आदिशक्ति के बिना समस्त देवशक्तियां हैं अपूर्ण :सुषमा प्रवीण मिश्रा

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आदिशक्ति के बिना समस्त देवशक्तियां हैं अपूर्ण :सुषमा प्रवीण मिश्रा



आदिशक्ति के बिना समस्त देवशक्तियां हैं अपूर्ण :सुषमा प्रवीण मिश्रा 



भोपाल
वैदिक चिंतन कहता है कि मां आदिशक्ति के बिना समस्त देवशक्तियां अपूर्ण हैं, शक्ति यानी भयमुक्त हमारे ऋषियों ने आदिशक्ति की इसी गौरव गरिमा को समाज में प्रतिष्ठित करने के लिए ऋतु परिवर्तन की बेला में नवरात्र साधना का विधान बनाया। जानना दिलचस्प होगा कि भारत की सनातन वैदिक संस्कृति की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि पूजा-उपासना व विविध धार्मिक कर्मकांडों से सजे विविध पर्व-त्योहारों आत्मिक उत्कर्ष के साथ सामाजिक समसरता का भी बड़ा सन्देश देते हैं। चेतना के क्षेत्र में सुसंस्कारिता का संवर्धन हमारे देवपर्वों का युगों-युगों से कार्यक्षेत्र रहा है। निर्मल आनन्द के पर्याय हमारे सांस्कृतिक पर्व वस्तुत: लोकजीवन को देव जीवन की ओर उन्मुख करते हैं। हिन्दू दर्शन में नवरात्र काल को शक्ति संचय की दृष्टि से अति विशिष्ट माना जाता है। शक्ति उपासना के इस विशिष्ट साधनाकाल में साधक आदिशक्ति की उपासना के साथ नारी शक्ति की गरिमा को साकार रूप देते हैं। इन नौ दिनों में भगवती दुर्गा के नौ रूपों की आराधना पुरुषार्थ साधिका देवी के रूप में की जाती है। देवी साधक प्रतिप्रदा से नवमी तक मां शक्ति के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा आराधना करते हैं। भगवती के इन नौ रूपों के पूजन के कारण ही इस अवधि को नवरात्र काल कहा जाता है। नवरात्र की अमृत बेला में मूल रूप से मां शक्ति की उपासना का विधान है। मां दुर्गा का स्वरूप वस्तुत: शक्ति का विश्वरूप है और नवरात्र का अनुष्ठान शक्ति के साथ मर्यादा का अनुशासन और मां के सम्मान का संविधान। देवी आराधना का यह उत्सव मांदुर्गा की नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के रूप में सनातन काल से मनाया जा रहा है। सनातन धर्म में देवी दुर्गा के नौ रूप उनके शक्ति वैविध्य का ही विस्तार है। सच भी है कि शक्ति के बिना लोकमंगल का कोई भी प्रयोजन सफल नहीं हो सकता। यही वजह है कि हमारे यहां शक्ति के बिना शिव को ‘शव’ की संज्ञा दी गई है। शक्ति ही चेतना है, सौन्दर्य है, इसी में संपूर्ण विश्व निहित है। देवी दुर्गा शक्ति की अपरिमितता की द्योतक हैं। जिस तरह युद्ध के संकट काल में दुर्ग में रहने वाले लोग सुरक्षित बच जाते हैं, ठीक उसी तरह मां दुर्गा की शरण में आए हुए की दुर्गति कदापि नहीं हो सकती। दुर्गा शब्द का यही निहितार्थ है। इसीलिए वे दुर्गति नाशिनी कहलाती हैं।
मातृ शक्ति के इसी सृजनात्मक व दिव्य स्वरूप को प्रतिष्ठित करने के लिए मार्कण्डेय ऋषि ने देवी भागवत पुराण में अलंकारिक भाषा शैली में विविध रोचक कथा प्रसंगों की संकल्पना की है। ‘दुर्गा सप्तशती’ में भगवती दुर्गा की अभ्यर्थना पुरुषार्थ साधिका देवी के रूप में की गई है। मां जगदम्बा के इस महात्म्य को वर्तमान संदर्भों में देखें तो पाएंगे महिषासुर पाशविक प्रवृत्तियों का प्रतीक है। जब-जब मानव समाज में सात्विकता व नैतिकता का हृास होता है तब-तब पाशविक प्रवृत्तियां सिर उठाकर संसार में हाहाकार मचाती हैं।

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