जिले में कुपोषित बच्चों की पहचान पर चल रही लापरवाही,महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी निष्क्रिय
आंगनवाड़ी केंद्रों के मार्फत दर्ज कराई जा रही फर्जी जानकारी
संतोष तिवारी, सीधी।
जिले में महिला बाल विकास विभाग के अमले की लापरवाही के चलते कुपोषित बच्चों की समय पर पहचान करने एवं उपचार सुनिश्चित करानें में बड़ी लापरवाही बनी हुई है। जबकि कुपोषित बच्चों के उपचार एवं पोषण आहार को लेकर भारी भरकम बजट भी मिलता है। दरअसल कुपोषित बच्चों की पहचान को लेकर जिला कार्यक्रम अधिकारी पूरी तरह निष्क्रिय है। उनकी लापरवाही से आंगनवाड़ी केंद्र स्तर से भी लापरवाही बनी हुई है। जिला कार्यक्रम अधिकारी जब से पदस्थ हुए हैं कभी फील्ड में भ्रमण में नहीं जाते और न ही उनके द्वारा विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन पर कोई ध्यान दिया जाता।इसी वजह से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा अपने क्षेत्र में भ्रमण कर कुपोषित बच्चों की पहचान का काम औपचारिक रूप से ही किया जाता है। लिहाजा गरीब परिवारों के कुपोषित बच्चों की न तो समय पर पहचान हो पाती और न ही उन्हें उपचार की सुविधा ही मुहैया हो पाती। जानकारों के अनुसार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं कुपोषित बच्चों की पहचान सुनिश्चित करानें में इसलिए लापरवाह हैं क्योंकि उनको स्वयं उपचार करानें के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा। किसी वजह से सीधी जिले में 0 से 6 वर्ष के बच्चों के वजन एवं ऊंचाई के मापन में भी फर्जी आंकड़े आंगनवाड़ी केंद्रों की ओर से दर्ज करके परियोजना कार्यालयों में जमा कराया जाता है। हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित आंगनवाड़ी केंद्र न तो समय पर खुलते हैं और न ही वहां गुणवत्तायुक्त नास्ता बनाने की जरूरत समझी जाती है। अधिकांश आंगनवाड़ी केंद्रों में कार्यकर्ताएं नियमित रूप से जाती ही नहीं हैं। सहायिका के जिम्मे ही आंगनवाड़ी केंद्र का संचालन है।सहायिकाओं द्वारा आंगनवाड़ी केंद्र में नास्ता एवं खाने के वितरण की व्यवस्था देखी जाती है। उस दौरान भोजन की गुणवत्ता नहीं जांची जाती। सीधी जिले में पोषण ट्रेकर के माध्यम से 0 से 6 वर्ष के बच्चों के संबंध में केवल कागजी जानकारी ही दर्ज की जा रही है। महिला बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी स्वयं आंगनवाड़ी केंद्रों का औचक निरीक्षण करने के लिए नहीं जातीं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं में कार्यवाही को लेकर कोई खौफ नहीं रहता। विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों का हाल यह है कि वह केवल अपने बंगले और कार्यालय के बीच ही सीमित रहते है। जबकि उनको आंगनवाड़ी केंद्रों का निरीक्षण स्वयं मौके पर जाकर करना चाहिए। इसके लिए उनके द्वारा स्वत: निरीक्षण के फर्जी आंकड़े दर्ज कर शासन को गुमराह किया जा रहा है। कुछ सालों से स्थिति यह हो चुकी है कि आंगनवाड़ी केेंद्रों से शासन द्वारा जो योजनाएं बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं धात्री महिलाओं के लिए संचालित किए जा रहे हैं उनका लाभ नहीं पहुंचता। आंगनवाड़ी केंद्रों को पौष्टिक नास्ते पर्याप्त मात्रा में हर महीने उपलब्ध कराया जाता है। उसका उपयोग नाम मात्र के लिए ही केंद्रों में किया जाता है। छोटे बच्चों को नास्ता के नाम पर पुराने नास्ते परोसे जाते हैं। जबकि हर महीने आने वाला नया नास्ता केंद्रों से गायब कर दिया जाता है। पौष्टिक आहार वितरण की जिम्मेदारी आंगनवाड़ी केंद्रों में जिस तरह से होनी चाहिए वह धरातल पर नजर नहीं आती। ग्रामीणों से चर्चा करने पर वह आंगनवाड़ी केंद्रों पर पूरी तरह से असंतुष्ट नजर आते हैं।
0 टिप्पणियाँ