सरस्वती शिशु मंदिर मड़वास को मिली हाई स्कूल की मान्यता
सीधी
सीधी जिले के मझौली क्षेत्र अंतर्गत अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों में शुमार सरस्वती शिशु मंदिर मड़वास को लोक शिक्षण संचालनालय ने स्कूल को हाई स्कूल की मान्यता दे दी है। मान्यता संबंधी पत्र मिलते ही विद्यालय परिवार में खुशी छा गई है. विद्यालय परिवार से जुड़े सभी आचार्यों ने सामूहिक रूप से इस उपलब्धि का जश्न मनाया और स्कूल को ग्लोबल लेबल पर उत्कृष्ट स्थान दिलाने का संकल्प लिया। विद्यालय के आचार्यों को संबोधित करते हुए सरस्वती शिशु मंदिर मड़वास के प्रधानाचार्य हिंछलाल शुक्ला ने कहा कि यह उपलब्धि के असली हकदार ग्राम भारती के साथ स्कूल के आचार्य सुरेंद्र पांडेय ,दीदी मंजू नामदेव,सुधांशु शुक्ला,शिवमूरत शुक्ला, गेंदलाल यादव,सुशील शुक्ला,मनीष शुक्ला,संभू शुक्ला है ।
आपको बता दें कि सरस्वती शिशु मंदिर मड़वास 4 जुलाई 1993 से लगातार संचालित है यह एक ऐसी विद्यालय है जहां शिक्षा के साथ साथ संस्कार भी दिए जाते हैं।
बेहतर शिक्षा ही हमारी आधार
स्कूल के प्रधानाचार्य श्री शुक्ल ने कहा कि हम शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अलग कर ही अपना विशिष्ट स्थान कायम किए हैं। बेहतर शिक्षा ही हमारा आधार हैं।
अभिभावको में खुशी की लहर
बच्चों के अभिभावकों ने कहा कि मड़वास क्षेत्र की शिक्षा में उत्तरोत्तर विकास के लिए यह स्कूल मील का पत्थर साबित हुआ हैं। और आगे होता रहेगा यह संस्थान विद्यार्थियों को उत्तम से उत्तम शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध तथा कटिबद्ध है और भविष्य में सर्वश्रेष्ठ सुविधा देने के लिए प्रयत्नशील रहेगा. इस सफलता पर विद्यालय को क्षेत्र के अनेक समाजसेवी शिक्षाविद एवं गणमान्य लोगों ने शुभकामनाएं दी.
एक नजर सरस्वती शिशु मंदिर के इतिहास पर:
भारतरत्न नानाजी देशमुख की राष्ट्र प्रेम चर्चा गोरखपुर में किए उनके कार्यों के जिक्र के बिना अधूरी है। वह इसलिए कि उन्होंने गोरखपुर में संस्कारों को सुरक्षित रखने के लिए जो कार्य किए, वह पूरे देश के काम आए। हम बात कर रहे हैं पूरे देश में संचालित सरस्वती शिशु मंदिर की जिसकी नींव नानाजी देशमुख ने गोरखपुर में ही रखी थी। नानाजी का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था और 27 फरवरी 2010 को उनका निधन हो गया।
बात उस दौर की जब देश आजाद तो हो चुका था, पर नई पीढ़ी की मैकाले की शिक्षा प्रणाली पर निर्भरता बनी हुई थी। नानाजी देशमुख को यह बात अखरती थी। वह उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर गोरखपुर के लोगों को अंग्रेजी प्रभाव से मुक्त करके भारतीयता से जोडऩे में लगे हुए थे। उसी दौरान शिक्षा को मैकाले से मुक्त कराने और नई पीढ़ी को संस्कारयुक्त भारतीय शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए उनके मन में सरस्वती शिशु मंदिर खोलने का विचार आया।
इसमें उन्हें लखनऊ के प्रचारक भाऊराव देवरस और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भी सहयोग मिला और 1952 में उन्होंने स्कूल की नींव रख दी।
इसी तर्ज पर जब प्रदेश भर में शिशु मंदिर खुलने लगे तो राज्य स्तरीय शिशु शिक्षा प्रबंध समिति का गठन किया गया। फिर तो उत्तर भारत के सभी प्रदेशों में ऐसी समितियों का गठन कर शिशु मंदिरों की स्थापना होने लगी। 1977 तक जब इन समितियों का अखिल भारतीय स्वरूप सामने आने लगा तो विद्या भारती की स्थापना की गई और सभी सभी समितियां उससे जुड़ गईं। आज देश भर विद्या भारती के बैनर तले लगभग 30 हजार से अधिक सरस्वती शिशु मंदिर संस्कारिक शिक्षा दे रहे हैं।
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