ग्वालियर। शहर के रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जर्मनी में मौत हो गई है. परिवार यहां उसके शव के इंतजार में है. पिछले चार दिन से परिवार उसके शव को भारत लाने के लिए केंद्र सरकार से गुहार लगा रहा है. बावजूद इसके अभी तक परिवारजनों को सरकार की तरफ से कोई भी मदद नहीं मिल पा रही है. ग्वालियर के रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रवीण राठौर की जर्मनी के म्यूनिख में मौत हो गई थी. मौत के बाद मृतक प्रवीण के शव को भारत पहुंचने के लिए जर्मनी की तरफ से कोई मदद नहीं की जा रही है.
ग्वालियर शहर के ललितपुर कॉलोनी में रहने वाले बाबूलाल का बड़ा बेटा प्रवीण राठौर (41) जर्मनी में एक प्राइवेट कंपनी एसएसटीआई में काम करता था. पिछले 3 वर्षों से जर्मनी के म्यूनिख शहर में वो कार्यरत था. 14 अगस्त की रात घर लौट कर परिवार के साथ खाना खाकर सोने चला गया. जब सुबह उसकी पत्नी ने जगाया तो प्रवीण उठ नहीं सका और उसके बाद प्रवीण की पत्नी ने डॉक्टर को घर पर बुलाया और उसे अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टर ने प्रवीण को मृत घोषित कर दिया. इसके बाद उसका शव मर्चरी में रखा है.
पिता ने मांगी सीएम और केंद्रीय मंत्री से मदद:
मृतक प्रवीण राठौर के पिता ने बताया है कि "वह अपने बेटे के शव को भारत लाने के लिए पिछले 4 दिन से प्रयास कर रहे हैं. उनकी बहू नीलम राठौर उनका मासूम 7 वर्षीय बच्चा भी म्युनिख शहर में है, जोकि अब पूरी तरह से अकेले पड़ चुके हैं. इस संबंध में उन्होंने पीएमओ ऑफिस, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को ट्वीट कर मदद मांगी है, लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें कोई मदद अभी तक नहीं मिल पाई है. वह पिछले 4 दिनों से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ग्वालियर के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया से लगातार मदद की गुहार लगा रहे हैं लेकिन अभी तक कोई मदद के लिए आगे नहीं आया है."
सीएम और केंद्रीय मंत्री को लिखा पत्र:वहीं, ग्वालियर के बेटे प्रवीण राठौर का शव भारत लाने के लिए कांग्रेस के विधायक सतीश सिकरवार ने भी सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी पत्र लिखकर मदद मांगी है. विधायक सतीश सिकरवार का कहना है कि "ग्वालियर का बेटा और उनका पड़ोसी प्रवीण राठौर की जर्मनी में मौत हो गई है. पिछले 4 दिन से उसका शव मर्चरी में पड़ा हुआ है. इसको लेकर न तो जर्मनी की सरकार मदद कर रही है और ना ही अभी तक भारत से मदद मिल पाई है
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