बाल श्रम बच्चों को उनकी क्षमताओं बचपने और गरिमा से दूर करता है...प्रत्येक बच्चा देश का सम्भावित प्रकाश स्तंभ है आइए मिलकर इसकी रक्षा करें
बच्चे देश का भविष्य हैं उनसे श्रम करवाना कानूनी अपराध है जहां संयुक्त राष्ट्र एवं सदस्य राष्ट्रों द्वारा प्रतिवर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश 5 वर्ष से 17 वर्ष तक के बच्चों को सुरक्षित और श्रेष्ठ भविष्य देने के लिए उन्हें श्रम से अलग रखना है। ताकि वे अपने शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास एवं सुरक्षित भविष्य के लिए अपने को समाज के लिए उपयोगी एवं योग्य नागरिक के रूप में विकसित कर सकें। बच्चों को ज्यादा से ज्यादा शिक्षा से जोड़ना है।
बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं जिनमेंअशिक्षा, गरीबी, अभिभावकों की असमय मृत्यु, पालक द्वारा नशा करना और काम करने हेतु बच्चों को भेजना, सामाजिक मापदंड, वयस्कों तथा किशोरों के लिए अच्छे कार्य करने के अवसरों की कमी, प्रवास और इमरजेंसी शामिल हैं। ये सब वज़हें सिर्फ कारण नहीं बल्कि भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम हैं। बच्चों का काम स्कूल जाना है न कि मजदूरी करना।
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2023 का लक्ष्य "सभी के लिए सामाजिक न्याय एवं बाल श्रम उन्मूलन" घोषित है। हम सभी का यह दायित्व है कि बाल श्रम को हतोत्साहित करें तथा उसके दुष्प्रभाव के प्रति समाज एवं सरकारों को जागृत करें। बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, स्वयंसेवी संगठनों, नागरिक समुदाय और प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा बाल श्रम के विरुद्ध जन जागरूकता की आवश्यकता है।बाल श्रम की समस्या का मूल है निर्धनता और अशिक्षा। जब तक देश में भुखमरी रहेगी तथा देश के नागरिक शिक्षित नहीं होंगे तब तक इस प्रकार की समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी रहेंगी। देश में बाल श्रमिक की समस्या के समाधान के लिये प्रशासनिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत सभी स्तरों पर प्रयास किया जाना आवश्यक हैं। और इन सब के सामूहिक प्रयास से समाज में नशे रूपी दानों को भी खत्म करना होगा।
बाल श्रम एक ऐसा अपराध है जो बच्चों का संपूर्ण भविष्य नष्ट कर देता है। बालक अपराधी तो है पर उसका कोई भी दोष नहीं निरपराध होते हुए भी वह बाल श्रम अपराधी बन जाता है जबकि अपराधी हम सब होते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सघन प्रयासों के बावजूद भी आज भी लाखों बच्चे निम्न शारीरिक क्षमता के विपरीत अत्यधिक कठोर श्रम करते दिखाई पड़ जाते हैं। उनसे ऐसे कार्य भी लिए जाते हैं जो अत्यंत हानिकारक और कई बार तो जीवन के लिए घातक भी होते हैं। निश्चित रूप से आपने बुनकर उद्योग हो रंगाई उद्योग हो या फिर छोटे होटलों में बर्तन मांजने हुआ सफाई के कार्य करने में और घरों में काम में लगे हुए बच्चों को देखा होगा उनकी कोमल उंगलियां इतने कठोर कामों के लिए नहीं बनी फिर भी इन कामों को कोमलता से अधिक अच्छे से करा लिया जाता है इसीलिए इन सभी में बाल मजदूरों की संख्या ज्यादा है, विडंबना यह है कि उस कार्य के बदले में मजदूरी भी बहुत कम मिलती है। यानी कि कम मजदूरी में अधिक जोखिम वाले मजदूर मिल जाना।
एक बार एक मोबाइल की दुकान थी एक कम उम्र का लड़का दिखा मैं आपसे बार-बार कह रही थी कि तुम स्कूल क्यों नहीं जाते ?और वह अपनी नजरें चुरा रहा था और इसी एक पल में उसकी आंख से टप से आंसू भी गिरा, मैंने बहुत पूछा कि यदि स्कूल जाना चाहते हो मैं तुम्हें पढ़ा दू ,काम छोड़ दो पर उसने मुंह नहीं खोला और उसकी बेबसी आंखें आज भी मुझे याद है। इसी तरह हम अक्सर मुस्लिम बच्चों को साइकिल पंचर या मैकेनिक की दुकान और किसी भी टूल पार्ट्स के निर्माण की दुकान में देखते हैं और वहां यह तर्क दिया जाता है कि भाई बहन बहुत है पिता की कमाई कम है इसलिए हमें भी काम करना पड़ता है। सब कुछ जानते हुए एक अजीब सी बेबसी, कठोर कानून होने के बावजूद हम ऐसे बच्चों को मुक्त नहीं करा सकते और लगभग हर वर्ष बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में हम सब की आत्मा को मारने और श्रद्धांजलि देने का काम करते रहेंगे। क्योंकि कानून तो है पर कड़ाई नहीं, आर्थिक संकट तो है पर विकल्प नहीं, जब हमें यह बाल मजदूर दिखाई देते हैं तो उन अधिकारियों को क्यों नहीं जिनको इसी काम के लिए रखा गया है निश्चित रूप से लूपपोल हैं तभी हमें अव्यवस्थाएं दिखाई दे रहे हैं।
गांव स्तर पर एक बार एक बच्चा विद्यालय नहीं आ रहा था उसके घर जाकर कारण पूछा तो घर वालों ने कहा खेलने जाता है और साथी बच्चों ने बताया कि वह काम करने जाता है क्योंकि उनके पिता शराब पीते हैं और मार मार कर इन्हें घर से भगा देते हैं ताकि जाओ पैसा कमा कर लो चाहे जो करना पड़े भीख मांगना पड़े, चोरी करनी पड़े या कहीं काम ही करना पड़े और शाम को फिर उन बच्चों से वह पैसा छीन कर शराब, अफीम का नशा किया जाए ।यह काम हम अक्सर चौराहों पर छोटी बच्चियों और बच्चों को भीख मांगते हुए देखते हैं वहां भी नशे का एक बहुत बड़ा चक्रव्यू फैला होता है और निकलने वाली प्रत्येक गाड़ी लगभग रोज इन छोटे बच्चों को भीख मांगते देखती है फिर कहां कमी है कि हम इन्हें रोक नहीं पाते..... कई बार तो छोटे बच्चे चरस स्मैक और कोकीन बेचते हुए भी पाए जाते हैं और यह काम उनके परिवार के मुखिया द्वारा ही कराया जाता है मारपीट कर डरा कर क्योंकि बच्चों को शायद गंभीर सजा नहीं मिलती।
बाल मजदूरी एक कुप्रथा है। निश्चित रूप से जिस देश का भविष्य भीख मांगेगा, मजबूरी करेगा, विद्यालयों से दूर रहेगा अक्षर ज्ञान और साक्षरता से दूर रहेगा, तो ऐसे बच्चे बड़े होकर अपराध नशे की दुनिया में ही प्रवेश करेंगे क्योंकि यह कोमल हाथ बड़े होते होते बहुत कठोर हो चुके होंगे।
इससे देश की दुर्दशा है कि हम इन कोमल मन में खुशी , संतृप्तता और आजादी नहीं दे पा रहे।
बच्चे करेंगे काम और बड़े घरों में आराम करेंगे या आय बढ़ाने के लिए बच्चों को इस अंधेरे कठोर दलदल में ढकेल आएंगे, पढ़ाई लिखाई छुड़ा देंगे और नशे के व्यापार में धकेल देंगे तो आप ही कल्पना करें
कैसे होगा देश का नाम ??
बच्चों को बाल श्रम से रोककर उनके बचपन को संभालना, नशे के चक्रव्यूह में फंसने से उन्हें बचाना और भविष्य को उज्जवल बनाना आवश्यक है। वैश्विक स्तर पर गरीब और कमजोर बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। आइए हम सब मिलकर इस दिशा में अपने स्तर से सक्रिय प्रयास करें। 5 से 17 वर्ष के बच्चों को जहां भी मजदूरी करते देखें, उन्हें यथाशक्ति रोकने का प्रयास करें अभिभावकों से बात करने विद्यालयों में प्रवेश कराए। शायद इससे उनके भविष्य निर्माण में कुछ सहायता हो सके।
बाल मज़दूरी को जड़ से उखाड़ फेंकना हमारे देश के लिए आज एक चुनौती बन चुका है क्योंकि बच्चों के माता-पिता ही बच्चों से कार्य करवाने लगे है। आज हमारे देश में किसी बच्चे को कठिन कार्य करते हुए देखना आम बात हो गई है। हमारा संविधान 24 वें अनुच्छेद के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मज़दूरी, कारखानों, होटलों, ढाबों, घरेलू नौकर इत्यादि के रूप में कार्य करवाने पर रोक लगाता है और इसे एक दंडनीय अपराध सिद्ध करता है।
आइए मिलकर के सोचे कि गलती कहां हो रही है कानून कठोर है, सरकार कानून को लागू करने के लिए तत्पर हैं फिर भी क्यों हमें अक्सर सड़कों के किनारे होटलों में सिग्नल चौराहों पर बच्चों के कोमल हाथ भीख मांगते और काम करते दिख जाते हैं???
देश के भविष्य को कठोर श्रम करने से बचाएं।
रीना त्रिपाठी,
शिक्षिका एवं समाज सेविका।
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