ईडी के आतंकियों को सबक सिखाने छत्तीसगढ़ पुलिस को दिया जाये फ्री हैंड:सुधांशु द्विवेदी,अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं स्तंभकार
मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीनों से प्रवर्तन निदेशालय ईडी का आतंक इतना अधिक बढ़ गया है कि जनमानस को भी यह लगने लगा है कि ईडी अफसरों- कर्मचारियों के वेश में आतंकी- असामाजिक तत्व राज्य के नेताओं कारोबारियों, प्रतिष्ठित लोगों को आतंकित कर उनसे लाूटपाट का गिरोह चला रहे हैं। देश की आजादी के 75 वर्ष बीतने के साथ ही देश की हर मोर्चे पर सराहनीय तरक्की हुई है तथा देश के संवैधानिक ढांचे की सुदृढ़ता के साथ ही इसकी स्वीकार्यता में बढ़ोत्तरी के साथ इसकी प्रतिष्ठा भी वैश्विक स्तर की है। ऐसे में ईडी जैसे निकायों के राक्षसी वर्किग कल्चर से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान नहीं होने दिया जा सकता। यथा सर्वविदित है कि किसी भी मामले में जब किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई कानूनी- वैधानिक कार्यवाही की जाती है तो उसमें वैधानिक प्रावधानों, नियम प्रक्रिया तथा कानून का खास ध्यान रखाज जाता है। कई बार आदतन अपराधियों- असामाजिक तत्वों पर हुए सख्त पुलिस ऐक्शन विधि व्यवस्था की सुदृढ़ता की दृष्टि से शानदार नजीर बनते हैं तथा आदतन अपराधियों- असामाजिक तत्वों को हमेशा- हमेशा के लिये सबक मिल जाता है और उन्हें अपनी औकात में ही रहना पड़ता है लेकिन गैर भाजपा शासित राज्यों में ईडी व अन्य एजेंसियों के संविधान विरोधी कारनामों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि देश में लुटेरों- असामाजिक तत्वों द्वारा ऐसा संगठित गिरोह संचालित किया जा रहा है, जो भाजपा- आरएसएस के ऐसे लोगों के हाथों संचालित है, जो अपनी शैक्षणिक योग्यता का प्रमाण देने में भी अंदर तक हिल जाते हैं तथा यह गिरोह बिना किसी वारंट, बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया को पूर्ण किये नेताओं, अधिकारियों तथा कारोबारियों के घर में घुसकर उनकी किडनैपिंग जैसे करते हुए, मारपीट तथा लूटपाट जैसी हरकतों को अंजाम देता है। पिछले एक दो महीनों में छत्तीसगढ़ में ईडी की जो भी कार्यवाहियां हुई हैं वह सभी संदेह के दायरे में हैं क्यों कि उक्त कथित ईडी अफसरों द्वारा जिन भी लोगों की गिरफ्तारी- हिरासत में लेने की कार्यवाही होती है उनमें से कईयों को तो कोर्ट में भी पेश नहीं किया जाता है, उनसे मारपीट की जाती है। बाद में जोर जुल्म करके उनमें से कईयों को छोड़ दिया जाता है। ऐसे में प्रबल आशंका है कि ईडी के उक्त कथित कारिदें पकड़े गये लोगों को डरा धमकाकर उनसे पैसे की अवैध वसूली भी करते होंगे। ऐसे में राज्य में संवैधानिकता की सुदृढ़ता तथा कानून- व्यवस्था के व्यापक हित में ईडी के कारिदें रूपी ऐसे क्रिमिनल्स का बेहतर इलाज करने एवं उन्हें संवैधानिकता- वैधानिकता- नियम- कानून का सबक सिखाने का पूर्ण अधिकार राज्य के सर्वाधिकार प्राप्त व कानूनी तौर पर ताकतवर डीजीपी, एडीजीपी, आईजी, एसपी व अन्य पुलिस अधिकारियों को तत्परतापूर्वक दिया जाना चाहिये। ताकि वह आतंक फैला रहे तथाकथित ईडी गिरोह को ऐसा सबक सिखाएं जो देश व प्रदेश में प्रेरणादायी उदाहरण बन जाये। यहां सवाल यह उठता है कि यह तथाकथित ईडी गिरोह स्वयं को न्यायाधीशों तथा दंडाधिकारियों से भी ऊपर समझता है जो स्वयं के द्वारा कथित तौर पर गिरफ्तार किये गये/ हिरासत में लिये गये लोगों को कोर्ट के सामने पेश करने की आवश्यकता नहीं समझता तथा वह कोर्ट का काम भी स्वयं ही करने की नापाक जुर्रत करता है। ऐसे ईडी गिरोह की असलियत का भंडाफोड़ करने तथा उसे उसकी वैधानिक सीमाओं का ज्ञान कराने के लिये यह जरूरी है कि ईडी से जुड़े ऐसे मामलों की कमान सिद्धहस्त व ऊर्जा से परिपूर्ण आला पुलिस अधिकारियों को सौंप दी जाये, जो ईडी के नकाब में पूरे राज्य में आतंक फैलाते हुए जनता, कारोबािरयों को परेशान करने वाले गिरोह के गिरेबान में हाथ डालकर उन्हें कोर्ट में उनकी असलियत व करतूतों को बेनकाब कर दें। वर्तमान स्थितियों की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व का मुद्दा भी अहम है। क्यों कि 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के झीरम घाटी में नक्सलियों द्वारा कांग्रेस नेताओं के नरसंहार के बाद राज्य में पैदा हुई राजनीतिक परिस्थितियों तथा कांग्रेस पार्टी के प्रति राज्यभर में उमड़ी सहानुभूति के परिणामस्वरूप राज्य की सत्ता कांग्रेस पार्टी को मिली है तथा भूपेश बघेल को पार्टी की टॉप लीडरशिप ने राज्य का मुख्यमंत्री इस अपेक्षा के साथ बनाया था कि वह राज्य को भाजपा के कुशासन रूपी दलदल से उबारकर राज्य की चौतरफा बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करते हुए राज्य के कांग्रेस नेताओं की सुरक्षा एवं उनके मान- सम्मान को कायम रखने में क्षमतापूर्ण भूमिका निभाएंगे। भूपेश बघेल राज्य की बेहतरी की दिशा में तो ठीक- ठाक काम कर पा रहे हैं लेकिन भाजपाइयों के साजिश- षडय़ंत्र के चलते परेशानी झेल रहे कांग्रेसियों, राज्य के कारोबारियों तथा आम जनता के मान सम्मान को कायम रखने तथा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में भूपेश बघेल की नाकामी भी उजागर हो रही है। वैसे भी मुख्यमंत्री पद से आशय गैर जरूरी हेलीकॉप्टर यात्राएं करने, तमाशे और प्रदर्शनों, नौटंकियों, अनावश्यक भूमिपूजन- लोकार्पण की रस्म अदायगी से ही नहीं है। मुख्यमंत्री पद का तात्पर्य यह है कि राज्य सरकार का ऐसा संवेदनशील राजनीतिक नेतृत्वकर्ता, जो राज्य की जनता- व्यापारियों, व्यवसाइयों, किसानों, प्रशासन व पुलिस के ईमानदार अधिकारियों- कर्मचारियों के हितों एवं उनके मान सम्मान और जीवन की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील, प्रतिबद्ध एवं सक्षम हो। भूपेश बघेल अगर क्षमतापूर्वक काम नहीं कर पायेंगे तथा ऐसी रस्म अदायगी में ही लिप्त रहेंगे तो फिर उनमें और घपले- घोटालों के कथित सरगना रहे रमन सिंह में क्या फर्क रह जायेगा। फिर कांग्रेस की टॉप लीडरशिप मुख्यमंत्री पद पर भूपेश बघेल की ही कंटीन्युटी क्यों बरकरार रखेगा। ऐसे में भूपेश बघेल के लिये बेहद जरूरी है कि वह उल्लेखित बातों का ध्यान रखते हुए मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी प्रभावी भूमिका निभाएं।
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