EWS कोटे पर सुप्रीम कोर्ट में उठा सवाल- गरीबी हटाओ के लिए नहीं है आरक्षण,आरक्षण को अरब सागर में फेंक देंगे
सुप्रीम कोर्ट की कांस्टीट्यूशन बेंच ने मंगलवार को ईडब्लूएस कोटे के संवैधानिक वैधता को लेकर दायर केसेज की सुनवाई की। चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रविंद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला की बेंच ने अगले 5 वर्किंग डे में केस की सुनवाई पूरी करने की बात कही है। जाने-माने शिक्षाविद डॉ. मोहन गोपाल ने मामले में दलीलें पेश कीं। उन्होंने तर्क दिया कि आरक्षण को वंचित समूह को प्रतिनिधित्व देने का साधन माना जाता रहा है। लेकिन ईडब्ल्यूएस कोटा ने इस कांसेप्ट को पूरी तरह से उलट दिया है। यही नहीं डॉ. मोहन गोपाल ने यह भी कहा कि ईडब्लूएस कोटे का लाभ अगड़े वर्ग को मिलता है। लेकिन इससे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग बाहर हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा होने से संविधान की मूल भावना का उल्लंघन होता है, जिसके तहत समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांत की बात की गई है।
103वें संशोधन पर उठाया सवाल
सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील देते हुए डॉ. मोहन गोपाल ने 103वें संशोधन पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि यह संशोधन संविधान पर हमले के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर ईडब्लूएस वास्तव में आर्थिक आरक्षण होता, तो यह जाति के बावजूद गरीब लोगों को दिया जाता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। डॉ. गोपाल ने समझाया कि ईडब्ल्यूएस कोटा लागू होने से पहले जो आरक्षण मौजूद थे, वे जाति-पहचान पर आधारित नहीं थे, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व की कमी पर आधारित थे। हालांकि, 103वें संशोधन में कहा गया है कि पिछड़े वर्ग ईडब्ल्यूएस कोटा के हकदार नहीं हैं और यह केवल अगड़े वर्गों में गरीबों के लिए उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि कुमारी बनाम केरल राज्य में यह कहा गया था कि सभी वर्ग सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में शामिल होने के हकदार हैं।
तो हम आरक्षण को अरब सागर में फेंक देंगे
दलील पेश करते हुए डॉ. गोपाल ने कहा कि हमें आरक्षण में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम प्रतिनिधित्व में रुचि रखते हैं। अगर कोई आरक्षण से बेहतर प्रतिनिधित्व का तरीका लाता है, तो हम आरक्षण को अरब सागर में फेंक देंगे। उन्होंने बताया कि किसी की भी फाइनेंशियल कंडीशन एक क्षणिक स्थिति है। यह लॉटरी जीतने या जुआ हारने जैसी किसी एक घटना से बदल सकती है। उन्होंने कहा कि रिजर्वेशन इसलिए लाया गया ताकि पिछड़ों को शिक्षा और नौकरी में प्रतिनिधित्व मिल सके। इससे उनकी सामाजिक स्थिति और निजी जिंदगी में बदलाव लाया जा सके। डॉ. गोपाल के मुताबिक ईडब्ल्यूएस आरक्षण एक व्यक्ति या एक परिवार की स्थिति पर आधारित है। वहीं एसईबीसी आरक्षण समुदाय की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति पर आधारित है।
डॉ. गोपाल ने कहा कि यह मान लेना एक भ्रम है कि एसईबीसी आरक्षण जाति-आधारित है और इसमें उच्च जातियों को शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में, सामाजिक भेदभाव के शिकार कई ब्राह्मण समुदायों को ओबीसी आरक्षण के तहत लाभ दिया गया है। कहा कि अनुच्छेद 15(4) और 15(5) के तहत आरक्षण उन सभी जातियों के लिए है जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। हालांकि, अनुच्छेद 15(6), जिसे 103वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है, विशेष रूप से इसे उन लोगों के लिए बताता है जो एससी/एसटी और एसईबीसी आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछड़े वर्गों का बहिष्कार अवैध है। आप गरीब व्यक्ति को बताते हैं कि आप निचली जाति से होने के कारण हकदार नहीं हैं।
क्रेडिट: लाइव हिंदुस्तान
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