मौसम परिवर्तन के दौरान आता है अटैक, गंभीर डिप्रेशन का होते हैं शिकार

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मौसम परिवर्तन के दौरान आता है अटैक, गंभीर डिप्रेशन का होते हैं शिकार


मौसम परिवर्तन के दौरान आता है अटैक, गंभीर डिप्रेशन का होते हैं शिकार



अस्थमा एक पुरानी इन्फ्लेमेटरी बीमारी है, जो सीधे तौर पर आपके श्वसन प्रणाली को प्रभावित करती है. इसके अटैक के दौरान आपको तेज खांसी आती है, घबराहट होने लगती है और सांस फूलने लगता है (लंबी श्वास लेने पर एक खास तरह की ध्वनि भी सुनाई देती है).

दुनिया भर में लगभग 30 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं और यह संख्या 2025 तक 40 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर जाएगी. रोगियों के दैनिक जीवन पर अस्थमा का प्रभाव कितना ज्यादा पड़ता है, इस पर ब्रिटिश शोधकर्ता एडम जी, रेबेका एच और लिंडा एन ने एक शोध किया था. इस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार हमें पता चलता है कि अस्थमा एक रोगी के आम जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है.

नींद में खलल

अस्थमा का ज्यादातर दौरा देर रात या सुबह 4 बजे से पहले पड़ता है, जिसकी वजह से नींद पूरी नहीं हो पाती. सांस लेने में तकलीफ की वजह से एक बार रोगी के जागने पर दोबारा सो पाना एक बड़ी समस्या होती है. रातों को लगातार जागते रहने की वजह से शरीर में थकान होती है और ऊर्जा की कमी की वजह से दिन भर शरीर में सुस्ती बनी रहती है. सबसे बड़ी बात यह है कि बीमारी लंबे समय तक बनी रहती है, जिसकी वजह से थकान आपका पीछा नहीं छोड़ता.

भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव

अस्थमा का अटैक अक्सर मौसम बदलने के दौरान या सुबह से पहले के समय होता है. इसलिए जब भी मौसम बदलता है या जलवायु परिवर्तन होता है तो यह बीमारी रोगी को पूरी तरह से जकड़ लेता है और अस्थमा के अटैक को लेकर चिंतित रोगी डरा हुआ रहता है. इसका परिणाम यह होता है कि रोगी डिप्रेशन में चला जाता है और भावनात्मक रूप से अस्थिर महसूस करता है, जिसकी वजह से ऐसे पेशेंट बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं या फिर हर छोटी छोटी बात पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं. पेशेंट अक्सर निराशा की भावना के साथ स्वयं पर अपना नियंत्रण खो देते हैं और पेशेंट अकेला और चिड़चिड़ा महसूस करता है.

शारीरिक क्षमता में गिरावट

अस्थमा में जब आप ज्यादा शारीरिक मेहनत करते हैं तो आपकी सांस फूलने लगती है. यह घटना रोगी के खेल गतिविधियों में भाग लेने की क्षमता को भी कम करता है और उनके भीतर यह डर पैदा करता है कि अगर वह ज्यादा परिश्रम या शारीरिक गतिविधि करेंगे तो उन पर अस्थमा का अटैक हो सकता है, जिसकी वजह से वह अपने दैनिक जीवन में शारीरिक गतिविधियों को कम कर देते हैं.

शारीरिक प्रभाव

अस्थमा के इलाज में स्टेरॉइड का ज्यादा इस्तेमाल होता है. ज्यादा गंभीर अस्थमा के मरीजों को बार-बार इंजेक्शन, टैबलेट और पंप के जरिए स्टेरॉइड की हाई डोज दी जाती है. जिसकी वजह से कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जिसमें वजन का बढ़ना और पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर भी शामिल हैं.


सामाजिक प्रभाव

उपरोक्त बिंदुओं के परिणाम स्वरूप रोगी और परिवार के सदस्यों के बीच तनाव पूर्ण माहौल बन जाता है, जिससे संबंध खराब होते हैं. परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा रोगी को बोझ के तौर पर देखा जाता है. आज हम भले ही अस्थमा के इलाज के लिए टेक्नोलॉजी के विकास और कंट्रोल टेक्निक्स के बारे में दावा कर सकते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि अस्थमा से पीड़ित लोगों के दैनिक जीवन की स्थिति बेहद खराब हो जाती है.

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