सीधी:भूमिहीन कृषक ने पपीते की खेती में पेश किया मिशाल,लाखों रुपए की हो रही कमाई

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सीधी:भूमिहीन कृषक ने पपीते की खेती में पेश किया मिशाल,लाखों रुपए की हो रही कमाई



सीधी:भूमिहीन कृषक ने पपीते की खेती में पेश किया मिशाल,लाखों रुपए की हो रही कमाई



 यदि कड़ी मेहनत की जाए तो सफलता जरूर मिलती है। मेहनत और लगन ही सफलता का मूल मंत्र होती है। कोई भी व्यक्ति बैठे-बैठे कोई मुकाम को हासिल नहीं कर सकता, उसे दिन रात मेहनत करनी होती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की एक बहुत बड़ी आबादी अभी भी गांव में रहती है और खेती पर निर्भर है। लेकिन आज ग्रामीण युवाओं का रुझान खेती से हटा है और उनकी जगह पढ़े-लिखे शहरी युवाओं का रुझान खेती की तरफ बढ़ रहा है। आज कुछ ऐसे भी उदाहरण हमारे सामने है जिसमें लोग लीज पर जमीन लेकर खेती कर मिशाल कायम कर रहे हैं।

  हम बात कर रहे हैं ओम प्रकाश चौबे की जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश से अमेठी के रहने वाले हैं।  श्री चौबे 2 - 3 पीढ़ी से मध्य प्रदेश के सीधी जिला के निवासी हैं।  श्री चौबे सीधी जिला के जिला पंचायत में लिपिक के पद पर कार्य कर चुके हैं। श्री चौबे नौकरी के उपरांत 2019 में कृषि विज्ञान केंद्र सीधी के वैज्ञानिक डॉ. धनंजय सिंह के संपर्क में आए। श्री चौबे द्वारा कृषि से संबंधित बहुत सारे व्यवसाय पर वैज्ञानिक के साथ चर्चा हुई जिसमें से पपीते की खेती श्री चौबे को अच्छी लगी।  श्री चौबे द्वारा पपीते की खेती की पूरी जानकारी लेने के बाद सीधी मुख्यालय से करीब 8 किमी दूर तेदुहा ग्राम में 6 एकड़ जमीन लीज पर लेकर 3 एकड़ जमीन में पपीता की खेती तथा शेष 3 एकड़ में धन एवं गेहू की खेती करना प्रारम्भ की गई । 

  श्री चौबे के लिए खेती की राह आसान नहीं थी। उनके द्वारा लीज पर ली गई जमीन पूर्ण रूप से ऊंची-नीची एवं बंजर पड़ी थी, जिसके सुधार एवं खेती योग्य बनाने में कुल 6 लाख रुपए खर्च हुए। श्री चौबे द्वारा पपीते की किस्म रेड लेडी 786 के 5 हजार पौध फरवरी 2020 में 3 एकड़ के खेत में लगाया गया। श्री चौबे बताते हैं कि खेती का ज्ञान नहीं होने के कारण उन्हें प्रारम्भ में कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों के सतत संपर्क में रहने से उनकी समस्याओं का समाधान होता गया।  जिससे निर्धारित समय पर ही पपीते में फलन पूर्ण रूप से आ गया है। मार्च 2021 से उनके द्वारा अपने फार्म से ही प्रति दिन 1 से 1 .5  क्विंटल 40 रूपये प्रति किग्रा की दर से बेचा जा रहा है। चुकी फार्म नेशनल हाइवे से लगा है इसलिए पपीते की बिक्री पर लॉकडाउन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने बताया कि कम से कम चार सौ रुपये प्रति पेड़ और अधिक से अधिक बारह सौ रुपये के फल प्रति पेड़ आते है। इस प्रकार कुल 15 लाख रूपये मिलने की उम्मीद है। श्री चौबे ने बताया कि 3 एकड़ के पपीते की खेती में कुल 4 लाख 50 हजार रुपये का खर्च अभी तक आया है। 

  श्री चौबे ने अपनी सफलता से एक मिशाल पेश की है जो युवाओं को खेती की तरफ मोड़ने का भी काम कर रही है। श्री चौबे ने पपीते की खेती से आर्थिक मजबूती की नई राह भी दिखाई है। श्री चौबे बताते हैं कि धान, गेहूं की खेती में लाभ तो दूर लागत भी निकलना अब मुश्किल हो रहा है।  पपीते की खेती में यह सब दिक्कत नहीं है। इसमें अच्छा खासा लाभ है। श्री चौबे ने किराए की जमीन पर पपीते  की खेती करके खुद की एक अलग पहचान बना ली है। अपने खेती से बहुत संतुष्ट हैं और जून 2021 से शेष 3 एकड़ में भी पपीते की खेती करेंगे तथा खेती की तैयारी का कार्य शुरू कर दिए हैं।

ओम प्रकाश चौबे बताते हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र से मार्गदर्शन प्राप्त कर कोई भी किसान उन्नत खेती की तकनीक को अपना सकते है और अपनी आय को बढ़ा सकते है।

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