स्वतंत्रता दिवस विशेष: कविता का शीर्षक : "देश का यूँ सम्मान करो"
उम्मीदों के परे निकलकर राहों को यूँ पार करो।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल कर्मों का हुंकार भरो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
हे! देश के नौजवान तुम देश का यूँ सम्मान करो।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल कर्मों का हुंकार भरो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
उठो देश के कर्मवीर अब मन से ये संकल्प करो।
देश,रीति,समाज,संगठन लोगों का उत्थान करो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
राजनीति के छद्म वेष का खुलेआम विरोध करो।
अपने हक को पाने का यूँ हर संभव प्रयास करो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
गाँव, गली,शहरों से निकलो नित नई उड़ान भरो।
प्रतिभा अंदर छुपी पड़ी है यूँ उसका उपयोग करो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
जाति,रंग और धर्म-भेद से ऊंचा उठ विश्वास करो।
कर्म ही जाती धर्म तुम्हारा कर्म का यूँ संकल्प करो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम का ढाल नया तैयार करो।
तकनीकी,व्यवसायिक शिक्षा के तलवार से वार करो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
नई शदी के नए रंग की तकनीकों का उपयोग करो।
मानव, मानव बन जाए ऐसी तकनीक निजाद करों।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल.....।।
निज कर्मों की ज्योति जलाकर उजियारे मे "राज" करो।
देश की खातिर देह मिटाकर देश से तुम यूँ "प्रेम" करो।।
उम्मीदों के परे निकलकर राहों को यूँ पार करो।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल कर्मों का हुंकार भरो।।
चप्पा चप्पा मंजिल मंजिल कर्मों का हुंकार भरो।।
✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज"
सीधी(मध्यप्रदेश)
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