हर्षोल्लास से मनाया जन्माष्टमी का पर्व
शहडोल ।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव पूरे जिले में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया । अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की परंपराएं हैं। उन परंपराओं के हिसाब से श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। शहडोल के मोहन राम मंदिर स्थित राधाकृष्ण मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी पर धनिया और खांड (विशेष गुड़) से बनी पंजीरी का प्रसाद लगाया जाता है और यह परंपरा सवा सौ साल से अधिक पुरानी है । जब पंडित मोहन राम पांडे ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और भगवान कृष्ण और राधा की प्रतिमाओं को स्थापित किया था उसी समय से यह परंपरा अभी तक चली आ रही है। राधा कृष्ण मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन रात 10 बजे से जन्मोत्सव का आयोजन शुरू हो जाता है और रात 12.30 बजे तक यह आयोजन चलता है। रामानुज संप्रदाय के नियमों के हिसाब से यहां पर जन्माष्टमी मनाई जाती है। जो पुजारी भगवान के अभिषेक और उनको प्रसाद लगाने का काम करते हैं वे पुजारी ना तो किसी को स्पर्श करते हैं और ना ही किसी से वह संपर्क में आते हैं। इनके द्वारा ही प्रसाद और रसोई तैयार की जाती है। मंदिर के पुजारी पंडित लव कुश शास्त्री ने बताया है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर खड़ी धनिया को भूंजा जाता है और फिर उसे पीसा जाता है उसमें खांड विशेष तरह का गुड़ मिलाया जाता है। इस तरह पंजीरी तैयार की जाती है । इसके साथ ही माखन मिश्री और साबूदाना की खीर तैयार होती है । पंचामृत से अभिषेक होता है । यह कार्यक्रम देखने के लिए रात 9 बजे से ही मंदिर में लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगती है । राधा कृष्ण मंदिर में जैसे ही रात्रि के 12 बजते हैं मंदिर में घंटा घड़ियाल गूंजने लगते हैं और श्री कृष्ण के जन्मोत्सव में लोग झूमकर भजन गाते हैं इसके बाद महा आरती होती है। इस तरह से श्री कृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन होता है। कोरोना काल में पिछले साल केवल 5 लोगों की उपस्थिति में यह आयोजन किया गया था लेकिन अब इस साल यहां पर विशेष आयोजन की तैयारियां चल रही है । पंडित लव कुश शास्त्री ने बताया कि राम मंदिर में श्री कृष्ण का झूला उत्सव धूमधाम से मनाया गया। रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजली उत्सव मनाने के बाद इस झूला उत्सव का समापन हुआ है। उन्होंने बताया कि तकरीबन सवा सौ साल पुरानी परंपराओं का निर्वहन इस मंदिर में अब तक किया जा रहा है।
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