Sidhi News: चौथी से ग्यारहवीं शताब्दी तक के प्राचीन एवं भव्य नागर शैली के शैव मंदिरों का गढ़ है कुसमी
(लेखक श्री श्रेयस गोखले, वर्तमान समय में सीधी जिले में डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्यरत है)
सीधी।
गहन वनों व ऊंची पहाडि़यों से निर्मित सीधी जिले का कुसमी वनांचल सदा से जनजातीय समाज का निवास स्थान रहा है। इस क्षेत्र में चौथी शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक के प्राचीन एवं भव्य नागर शैली के इतने शैव मंदिरों का पाया जाना इसे पारिस्थितिक-सांस्कृतिक (इको-कल्चरल) क्षेत्र बनाता है।
कुसमी क्षेत्र के सेमरा, पोंड़ी एवं तुर्रानाथ व छत्तीसगढ़ सीमा से लगे हरचौका ऐसे चार प्रमुख क्षेत्र हैं जहां साल के गहन वनों में तपस्या करने एक समय अनेक शैव आचार्य रहा करते थे। सभी मंदिरों पर प्राचीन काल से स्थानीय व्यक्तियों की गहरी श्रद्धा है। इनमें से हरचौका मंदिर में आज भी बैगा परिवार व्यवस्थापक व अर्चक के रूप में सेवा देते हैं। ये निश्चित ही भारत की सनातन परंपरा में जनजातीय समुदाय का विलक्षण योगदान है।
आज ईश्वर की कृपा से इन सभी क्षेत्रों के दर्शन का अवसर मिला। जिस गहन वन में दोपहर बीतते ही अंधेरा सा होने लगता है और मन में भय सा उत्पन्न हो जाता है, वहां ये महान शैव आचार्य कंद, मूल, फल, जल का आहार करते हुए, दिन-रात, गर्मी-सर्दी-बरसात में, हिंस्र पशुओं के मध्य वन की नीरव शांति में वर्षों तप कैसे करते रहे होंगे, इस विचार से ही मन रोमांचित हो उठा।
चाहे वह चारों तरफ भुईमाड़ के ऊंचे पर्वतों से घिरा सेमरा (8-9वीं श.) हो या जंगल के मध्य में स्थित पोंड़ी(10-11वीं श.), या फिर वनयुक्त पहाड़ पर स्थित तुर्रानाथ (9-10वीं श.), या मवई नदी की ओर अभिमुख हरचौका के एकाश्म मंदिर के द्वादश ज्योतिर्लिंग (4-5वीं एवं 9-10वीं श.), सभी का अनुभव अपने में अनूठा है।
साल के वृक्ष में साक्षात भगवान शिव का वास रहता है तथा साल वन साक्षात कैलाशतुल्य है। संभवतः इसीलिए आचार्यों द्वारा तपस्या के लिए साल वनों का क्षेत्र चुना गया। सीधी जिले के साल वन राज्य के सबसे सुंदर वनों में से एक हैं। हर वृक्ष अपने में सौंदर्य, सौष्ठव व जिजीविषा का एक पुंज है। ऐसे मुग्ध करने वाले गहन साल वनों में इतनी बड़ी संख्या में तपस्वी शैव आचार्यों द्वारा निर्मित मंदिरों का होना इस जिले व संपूर्ण राज्य हेतु गौरव का विषय है।
आज अनुभव हुआ कि कुसमी का वन कोई साधारण वन नहीं, एक वृहद्, पवित्र व प्राचीन तपोवन है।
0 टिप्पणियाँ