सीधी: ‘‘पुरातत्व, पर्यटन और संस्कृति’’: जानिए सीधी और राजा बीरबल की कथाएँ
(लेखक श्री श्रेयस गोखले जिला पुरातत्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद् सीधी के प्रभारी अधिकारी हैं)
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भारत कथाओं का देश है। हमारे वैदिक, पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ लाखों कथाओं से भरे हुए हैं। लोकमानस में आदिकाल से रची बसी ये कथाएं समय के साथ लिखित अथवा वाचिक परंपरा से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती गई हैं। अनेक ऐतिहासिक व्यक्तियों का व्यक्ति-चित्रण भी ऐसी ही कथाओं के माध्यम से हम तक पहुंचा है। चाहे वे सम्राट अशोक हों, महाराज विक्रमादित्य हों, महाराणा प्रताप हों, बादशाह अकबर हों अथवा छत्रपति शिवाजी हों, हम सभी महान व्यक्तियों को उनसे जुड़ी हुई महान गाथाओं एवं कथाओं से ही जानते हैं। जब कथाएं भौगोलिक, राजनैतिक व पुरातात्विक तथ्यों से प्रमाणित हो जाती हैं तब वे और अधिक सुदृढ़ इतिहास बन जाती हैं।
सीधी जिले एवं राजा बीरबल के संबंध में भी ऐसी ही अनेक कथाएं आज भी जनमानस में रूढ़ हैं। लोक में यह कथा प्रचलित है कि राजा बीरबल का जन्म वर्तमान सीधी जिले के घोघरा ग्राम में हुआ था। राजा बीरबल के विषय में अधिक जानकारी तो प्राप्त नहीं है किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक स्रोतों से राजा बीरबल का जन्म घोघरा में होने का सीधा प्रमाण प्राप्त नहीं है एवं उनके घर व परिवार से संबंधित कोई स्थल भी यहां ज्ञात नहीं है। किंतु यह बिल्कुल स्पष्ट है कि उनका घोघरा देवी मंदिर से गहरा संबंध है। श्री पी.पी. सिन्हा द्वारा 1980 में लिखी हुई राजा बीरबल के संबंध में सबसे प्रमुख ऐतिहासिक पुस्तक श्राजा बीरबल-लाइफ एंड टाइम्सश् के अनुसार राजा बीरबल रीवा राज्य के तत्कालीन महाराजा रामचंद्र देव के दरबारी कवि थे। अतः स्वाभाविक ही है कि घोघरा देवी का मंदिर बघेल वंश हेतु महत्वपूर्ण स्थान होने से राजा बीरबल का यहां आवागमन व आस्था रही होगी।
1907 में श्री. सी.ई.लुआर्ड द्वारा संकलित रीवा राज्य गजेटियर के अनुसार राजा बीरबल एवं घोघरा मंदिर के विषय में कथा है कि घोघरा ग्राम जो सिहावल के 18 मील पश्चिम में है, वहां चंडी देवी के मंदिर में चंदैनिया के एक ब्राम्हण रघुवीर राम ने 12 वर्ष तक लगातार देवी की पूजा की। मंदिर परिसर साफ करने में उनकी बहन के पुत्र बीरबल उनकी सहायता करते थे। एक दिन जब बीरबल मंदिर में झाड़ू लगा रहे थे और रघुवीर राम वहां नहीं थे, अचानक बीरबल को चोट लगी और उनकी छोटी उंगली से थोड़ा रक्त गिरकर देवी की मूर्ति पर लग गया। देवी ने प्रसन्न होकर बीरबल को वरदान दिया कि वे जो बोलेंगे वह सच हो जाएगा। मंदिर से निकलकर वे समीप में मछली पकड़ते हुए एक केवट के पास पहुंचे उन्होंने उससे कहा कि पानी में डूबे उसके मछली पकड़ने के कांटे में पक्षी (स्थानीय जनों के अनुसार चातक पक्षी) फंसा हुआ है। बीरबल की बात सुनकर केवट ने कांटा बाहर निकाला तो देखा तो सचमुच कांटे में पक्षी फंसा हुआ था। उसी रात को देवी ने बीरबल के सपने में आकर कहा कि ऐसी शरारत में अपना वरदान व्यर्थ करने की जगह उसे राजा के दरबार में जाना चाहिए। इसी के कुछ समय बाद वे अकबर के दरबार में पहुंचे जहां उन्होंने बहुत नाम कमाया। यही कथा सीधी के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ संतोष सिंह चौहान जी ने भी अपनी पुस्तक ‘‘शोण घाटी का वैभव’’ में उल्लिखित की है। उपरोक्त कहानियों से यह तो माना ही जा सकता है कि बीरबल का बालक के रूप में जन्म भले ही यहां ना हुआ हो पर तब भी राजा बीरबल का वह कवि और हाजिरजवाब स्वरूप जिस कारण हम उन्हें आज भी याद करते हैं, उसका जन्म तो घोघरा में ही हुआ था। अतः बीरबल को बीरबल बनाने वाला स्थान सीधी का घोघरा ही है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
घोघरा मंदिर की पहाड़ी से नीचे की और दो प्राचीन गुफाएं हैं जहां ऐसा माना जाता है कि रघुवीर और बीरबल रहा करते थे। उसके और नीचे एक जलधारा है जिसमें वे स्नान किया करते थे। यही जलधारा आगे जाकर सोन में मिल जाती है।
आज बीरबल से संबंधित कितनी ही कहानियां बच्चों व बड़ों के मन को भाती हैं एवं न्याय व बुद्धिमत्ता की शिक्षा देती हैं। किंतु एक दरबारी, सेनापति, प्रशासक, राजनयिक, साहित्यकार, राजा के मित्र व वैष्णव परंपरा के मूर्धन्य विद्वान राजा बीरबल के चरित्र का समग्र अध्ययन एक विचारणीय विषय है। सीधी जिले एवं घोघरा का यह सौभाग्य ही है कि इसने यह रत्न भारत देश को दिया है।
संदर्भ साभार
1. रीवा स्टेट गजेटियर, भाग-4, 1907, श्री सी एल लुआर्ड, पृ. 83
2. राजा बीरबल लाइफ एंड टाइम्स,1980, श्री पी.पी. सिन्हा, पृ.29
3. शोण घाटी का वैभव, 2014, डॉ. संतोष सिंह चौहान पृ.111
चित्र साभार
1.श्री.अजीत सिंह बघेल
2.विकिपीडिया कॉमन्स, मुक्त स्रोत
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