जन्मदिन पर विशेष:लोक कल्याण की पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्ध पत्रकार- सुधांशु द्विवेदी
पत्रकारिता का पेशा अब मिशन नहीं बल्कि व्यापार बन चुका है। बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों ने पत्रकारिता को लगभग नष्ट कर अपने उपयोग का हथियार बना लिया है। हर पत्रकार कहीं ना कहीं किसी ना किसी गुट, किसी ना किसी समुदाय, किसी ना किसी वर्ग विशेष से जुड़ा नजर आता है, ऐसी स्थिति में बहुत कम ऐसे पत्रकार हैं जो कि आज भी पत्रकारिता के मूल्यों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है इसके लिए भले ही उन्हें उन तथाकथित पत्रकारों की उपेक्षा और प्रहसन का पात्र बनना पड़ता है जोकि या तो सत्ता के दलाल हैं या फिर जिन्होंने अपने जमीर को किसी कारपोरेट घराने के पास गिरवी रख दिया है।
सुधांशु द्विवेदी एक ऐसे युवा और कर्मठ पत्रकार हैं जिन्होंने ना तो कभी अपने जीवन में सत्ता की दलाली को प्रश्रय दिया और ना ही अपने जमीर को किसी कारपोरेट घराने के पास गिरवी रखा।
श्री द्विवेदी ने पत्रकारिता के पवित्र मूल्यों की रक्षा के लिए हमेशा अपनी कलम उठाई और समाज में फैली असमानता, समाज में फैली कुरीतियों, समाज में फैली अज्ञानता और अंधविश्वास के खिलाफ उसे चलाया।
राजनीतिक षड्यंत्र के खिलाफ भी लिखने से उन्होंने कभी परहेज नहीं किया। इसका परिणाम यह रहा कि उनके अपने दिखने वाले पत्रकार भी उनके साथ परायो जैसा व्यवहार करने लगे लेकिन इससे ना तो श्री द्विवेदी की हिम्मत टूटी और ना ही वह कभी हताश हुए।
श्री द्विवेदी कहते हैं अपने और पराए की पहचान मुझे कलम ने करवा दी, आज मैं जानता हूं कि आप जब अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगे और उन लोगों को या तो बेनकाब करेंगे या फिर उनके स्वार्थों को नुकसान पहुंचाएंगे तो वह आपके शत्रु हो जाएंगे। मैं अपना काम कर रहा हूं और मेरा काम है शोषित व पीड़ित मानवता की सेवा करना, जो लोग मुझसे दूर हो गए हैं तो यह समझिए कि उन्होंने कहीं ना कहीं मेरे काम को और मेरे मिशन को आसान कर दिया है। मैं जानता हूं कि सदियों से ऐसा ही होता आया है जब लोक कल्याण की राह पर कोई भी व्यक्ति चलता है तो उसे समझ लेना चाहिए कि वह कांटो भरी राह पर चलने की तैयारी कर रहा है।
रवींद्र अग्रवाल
वरिष्ठ पत्रकार
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