बघेली रचना गुरुपूर्णिमा पर विशेष : दोहे गुरु के महिमा के
अपना पंचेन सब जन क गुरु पूर्णिमा क बहुत बहुत बधाई अउर सुभकामना। अउ हमार सब गुरु जनन क सादर चरन छुइ क परनाम
गुरु के गुणन क का कही, कइसे करी बखान।
दँ आपन अनुभव सगल, सगला आपन ज्ञान।।
महतारी अउ बाप हँ, पहिला गुरु तू जान।
जन्म दिहिन एह भूमि में,अउ दिहिन पहिल ज्ञान।।
नित-नित सींचा बाग कस, बाढ़इ बुद्धि क पेड़।
गुरू बिना सब झूर हाँ, लड़िका बूढ़ अधेड़।।
भगवानउ पहुँचे इहाँ, लिहिन मनुज अउतार।
मातु पिता गुरु के कहिन, जीवन के आधार।।
गुरु बिन कउनउ ना लहै, भेद अभेद के ज्ञान।
नासमझी जीवन रहै, मिलइ न कउनउ मान।।
गुरू सब गुन के खान हाँ, माना ध्यान लगाइ।
ओन्हइन की तू पूजि ल,जन्म भागि खुलि जाइ।।
बोले बिन सब जानि लाँ, मन मन्दिर के बाति।
इच्छा पूरी करत हाँ, सब भगवन की भाँति।।
विदिया भाव विनोद अउ, राग रागिनी रंग।
भक्ति सक्ति अउ तेज हो, मिलइ गुरु के संग।।
माटी क चंदन करइँ, मूरख ज्ञानी होइ।
तेज घाम सीतल बनइ, जब असीस गुरु देंइ।।
हमहूं करी पराथना, हाँथ जोरि सस्टांग।
द असीस एह मूढ़ की, मातु पिता गुरु संग।।
लेखक राजेश कुमार कुशवाहा "राज"
सीधी(मध्यप्रदेश)
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