संकट के समय पर सेवा ही मानव का परम धर्म- शिवमूरत देव जी महाराज

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संकट के समय पर सेवा ही मानव का परम धर्म- शिवमूरत देव जी महाराज




संकट के समय पर सेवा ही मानव का परम धर्म- शिवमूरत देव जी महाराज



सीधी।
संपूर्ण जगत में कोरोना जैसी महामारी ने मानव प्रजाति पर त्राहि- त्राहि मचा रखा है राष्ट्र की सम्पूर्ण व्यवस्थाएं रुक गई हैं व्याप्त ऐसी महामारी के बावजूद भी राष्ट्रीय प्रवक्ता शिवमूरत देव जी महाराज एवं उनकी पूरी टीम  जन-जन संपर्क कर पीड़ित असहाय गरीब परिवारों तक भोजन सब्जी दवाई हॉस्पिटल आने जाने की व्यवस्था सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं इसके अलावा भी हॉस्पिटल में पहुंच समय समय से जायजा ले आवश्यकतानुसार सामग्रियां पहुंचाने का भी कार्य किया जा रहा है पूज्य श्री महाराज जी ने अयसी विषम परिस्थितिय पर की अपिल ऐसे संकट के समय में सभी संगठनों को सभी दलों को एकजुट होकर के सहयोग की भावना से आगे आने की आवश्यकता है कोई भी पार्टी चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस या अन्य कोई भी पार्टियां उन समस्त पार्टियों के कार्यकर्ताओं को भी आगे आने की आवश्यकता है और आज इस विपत्ति के समय पर लोगों का सहयोग करने की जरूरत है आगे चर्चा के दौरान पूज्यश्री महाराज ने बताया संकट के समय पर ही सेवा करना मानवता का प्रथम धर्म है हमारी संस्कृति में सेवा को ही सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है।"सेवा परमो धर्मः"की बात कही जाती है।सेवा को परम धर्म मानने के पीछे कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण तथा प्रत्यक्ष आत्मोद्वारक तत्त्व व कारक है।सेवा के अंदर दान, त्याग तथा समर्पण भाव रूपी धर्म के अंश प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों में विद्यमान है। सेवा कार्य में व्यक्ति शारीरिक श्रम (श्रमदान)के साथ- साथ धन, विचार, सद्भावना और सद्व्यवहार का भी उदारता पूर्वक दान करता है।इस प्रकार वह जरूरतमंद की सेवा के साथ-साथ अपने आप की भी सेवा करता है।अपने आप को संतुष्ट करता है और आत्मोद्धार भी करता है।
सेवा करने से आत्म-सन्तोष,मानसिक तृप्ति, संवेदनशीलता, समवर्तिता, आत्मानुशासन और समर्पण के मानवीय भावों तथा गुणों में अभिवृद्धि होती है और व्यक्ति की आत्मिक शक्तियों का विकास होता है।व्यक्ति का आत्म बल बढ़ता है।श्रद्धा और विश्वास रूपी शक्तियों में प्रगाढ़ता आती है।कठोर से कठोर साधना करने से जो सिद्धियां प्राप्त होती है, वह सभी सिद्धियां निःस्वार्थ भाव से सेवा करने से स्वतः प्राप्त हो जाती है। शायद यही कारण है कि धर्म तत्वज्ञ लोगों ने, सही अर्थों में धार्मिक कहे जाने वाले लोगों ने निःस्वार्थ सेवा को परम धर्म की संज्ञा दी है।आज तक जो लोग भी महान हुए हैं, महापुरुष कहे और माने गये है, उन्होंने सेवा धर्म को ही निःस्वार्थ भाव से अपनाया है।सेवा के माध्यम से ही व्यक्ति स्वयं के अंदर निहित समस्त धर्म तत्वों का बोध प्राप्त कर धर्मज्ञ हो जाता है।उसके मनोविकार दूर हो जाते है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सेवा धर्म को अपनाकर ही समस्त उपलब्धियां प्राप्त की और अंततः राष्ट्रपिता कहलाये।सभी संतो- महात्माओंने ज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद सेवा कार्य को महत्व दिया और तद्हेतु सेवा संस्थानों की स्थापना कर अपने अनुयायियों को सेवा कार्य करने की सद्प्रेरणा दी।स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द, स्वामी रामतीर्थ,मुक्तानन्द, स्वामी शिवानन्द, परम पूज्य अवधूत भगवान राम आदि सभी ने सेवा कार्य को ही महत्त्व दिया और सेवा संस्थान स्थापित किये।आज इन लोगों द्वारा स्थापित सेवा संस्थाएं व्यापक स्तर पर सेवा कार्य कर रही हैं आप सभी को आगे बढ़ कर असहाय गरीब परिवार को आपकी जरूरत है आईए हम सब सहयोग हेतु आगे बढ़ें
पूज्य श्री महाराज जी के साथ सेवा सहयोग प्रदान कर रहे युवा अंकुश सिंह, राजाराम साहू, अंकुर साहू, अशोक उपाध्याय, अंकित सोनी, रामभजन जायसवाल ये सभी अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं।

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