मध्यप्रदेश में ब्लैक फंगस का दस्तक, दो लोंगो की मौत
मध्य प्रदेश में इंदौर और भोपाल के बाद अब जबलपुर में भी ब्लैक फंगस के मामलों की पुष्टि हुई है। मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग द्वारा कोरोना से ठीक हो चुके कुछ मरीजों में इसके लक्षण देखे गए हैं। इनमें एक मरीज की मृत्यु होने की भी पुष्टि की गई है। ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि लोगों की जान बचाने के लिए उनके शरीर के अंग तक काटकर निकालने पड़ सकते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए मरीज की आँखें तक निकालनी पड़ सकती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी कोरोना काल के पहले भी थी, लेकिन कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के इलाज में स्टेरॉयड के इस्तेमाल के बाद शुगर बढ़ने से ब्लैक फंगल इन्फेक्शन होने के चांस बढ़ जाते हैं, खासकर उन मरीजों को सतर्क रहने की जरूरत है, जो लंबे वक्त से मधुमेह से जूझ रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसके मामले देखे जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के गुप्तेश्वर निवासी 38 वर्षीय देवांशु वर्मा 2 अप्रैल को कोराना संक्रमित हुए। 5 अप्रैल को निजी अस्पताल में भर्ती किया गया, वेंटीलेटर की जरूरत के बाद उन्हें 15 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। यहाँ कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव होने पर उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट किया गया। 25 अप्रैल को चेहरे पर सूजन आई, आँख भी सूज गई। डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया, तब तक फंगस दिमाग में पहुँच गई। ऑपरेशन के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। 3 मई को उनकी मृत्यु हो गई। परिवार वालों ने बताया कि देवांशु को शुगर की समस्या थी।
शहपुरा जमुनिया के मनखेड़ी के रहने वाले 45 वर्षीय रामकुमार (परिवर्तित नाम) को कुछ दिनों पहले बुखार की शिकायत थी। गाँव में कोरोना जाँच नहीं हुई। स्थानीय चिकित्सकों से इलाज लेने के बाद बुखार ठीक हो गया। कुछ ही दिनों बाद चेहरे का एक हिस्सा सूज गया और आँख बंद हो गई। जबलपुर इलाज के लिए पहुँचे तो जाँच में शुगर 400 मिली। डॉक्टरों ने बताया कि लक्षण ब्लैक फंगस के हैं।
पाटन निवासी लगभग 55 वर्षीय शिक्षक रूपेश कुमार (परिवर्तित नाम) को लगभग 1 माह पूर्व कोरोना हुआ था। कोरोना से रिकवरी के दौरान उनकी तबियत बिगड़ने लगी। आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगी। विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी ब्लैक फंगस ठीक नहीं हो सकी और परिवार वाले उन्हें घर ले आए। सोमवार को उनका निधन हो गया।
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