ऑनलाइन गोष्ठी का हुआ आयोजन
भोपाल ।
लघुकथा की रचनात्मकता अब समकालीन लघुकथा के क्षेत्र में कदम बढ़ा चुकी है। यह विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रमों की कसौटी पर खरा उतर रही है। लघुकथा को अभिव्यक्ति का नवीन आयाम देना होगा। लघुकथा सृजन के साथ-साथ भाषा की रचना और समीक्षा के बिंदु भी तय होते जाना चाहिए। यह उद्गार व्यक्त किए लघुकथा लेखक और साहित्यकार पुरुषोत्तम तिवारी ने, जो लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल की लखनऊ शाखा की ऑनलाइन मासिक लघुकथा गोष्ठी एवं विमर्श में अध्यक्ष के रूप में अपनी बात रख रहे थे।
इस अवसर पर शोध केंद्र की निदेशक और लघुकथाकार कांता ने कहा कि लघुकथा शोध केंद्र का उद्देश्य नगरों-महानगरों की सीमाओं से निकलकर गांव-कस्बों में सृजनरत लघुकथाकारों की रचनाओं को पाठकों के सम्मुख लाना है। इस अवसर पर लखनऊ केंद्र की संयोजक अपर्णा गुप्ता ने 'बेमानी रिश्तों का सच",सरोज बाला ने 'ख्वाहिश" और संजीव आहूजा ने 'दहेज या हिस्सा" लघुकथा का पाठ किया, जिन पर समीक्षकीय टिप्पणी घनश्याम मैथिल 'अमृत" ने की। शिल्पी त्रिवेदी ने 'मोड़ा-मोड़ी", भावतोष पांडेय ने 'भय और भूख" तथा इरा जौहरी ने 'लगाई-बुझाई" लघुकथा सुनाई और इन पर समीक्षा मधुलिका सक्सेना ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर मंजू सक्सेना, डॉ श्याम गुप्ता, डॉ सुरभि सिंह ने भी लघुकथाओं का पाठ किया, जिन पर समीक्षात्मक आलेख गोकुल सोनी ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में शेख शहजाद उस्मानी, जया आर्य, कर्नल डॉ गिरजेश सक्सेना, मृदुल त्यागी, पवन जैन, अशोक धमेनिया, कुमकुम गुप्ता, डॉ रंजना शर्मा, सुषमा सिंह, सरोज सोनी, गीता परिहार, भारती पाराशर, मंजुलता दुबे, ओरिना अदा सहित अनेक लघुकथा प्रेमी लेखक व पाठक उपस्थित थे।
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