आदाब मुंशी प्रेमचंद का हुआ मंचन

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आदाब मुंशी प्रेमचंद का हुआ मंचन



आदाब मुंशी प्रेमचंद का हुआ मंचन 



 भोपाल। 
मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित उर्दू ड्रामा फेस्टिवल के तहत रवींद्र भवन में तीन कहानियों के कोलाज से तैयार नाटक आदाब मुंशी प्रेमचंद का मंचन किया गया। मुकेश शर्मा के निर्देशन में प्रस्तुति समांतर सोश्यो कल्चरल सोसायटी के कलाकारों ने दी। इसमें नमक का दरोगा, सज्जनता का दंड व कानूनी कुमार, कहानी को मिलाकर एक कोलाज के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद का स्मरण किया गया। नमक का दरोगा का होना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि 12 मार्च के ही दिन 1930 में गांधीजी ने नमक पर टैक्स के विरुद्ध दांडी यात्रा शुरू की थी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों को टैक्स वापस लेना पड़ा । नमक का दरोगा और सज्जनता का दंड कहानियां समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी पर लिखी गई हैं। प्रस्तुति में तीनों कहानियों के माध्यम से ईमानदारी पाप नहीं है, को दर्शाने की कोशिश की गई। यह जरूर है कि आज की इस दुनिया में ईमानदारी से जीना मुश्किल है, क्योंकि भ्रष्ट लोग ईमानदार को दबाने के लिए हर जगह मौजूद हैं। ऐसे में व्‍यक्ति को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन भगवान भी सच्चाई का साथ देता है, सत्य छुपाए नहीं छुपता, इसी प्रकार सज्जन व्यक्ति को तमाम मुश्किलों के बाद भी उसकी ईमानदारी- सज्जनता का फल कभी न कभी जरूर मिलता है। नाटक में दो भाइयों को दिखाया गया जो कि कर्तव्यनिष्ठ हैं और ईमानदारी के पथ पर अग्रसर हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वृद्ध मुंशी उन दोनों को ऊपरी आय का लालच देते हैं। लेकिन दोनों भाई अपनी ईमानदारी पर अडिग रहते हैं और अपनी इसी ईमानदारी के चलते एक भाई का जहां बार-बार तबादला हो जाता है तो वहीं दूसरे भाई को उसकी ईमानदारी के चलते पंडित अलोपिदीन के कहने पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता है। लेकिन अंत में अलोपिदीन का अपराध-बोध के कारण हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह स्वयं वंशीधर से माफी मांगने उसके घर आते हैं और उसे जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर देते हैं।

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