जल संरक्षण संवर्धन की है आवश्यकता - संतोष वर्मा, जल विशेषज्ञ
भोपाल ।
राजधानी में गिरते भूजल स्तर ने एक बार फिर चिंता बढ़ा दी है। कई क्षेत्रों में अभी से जलसंकट की नौबत आ गई है। ये वे क्षेत्र हैं, जहां की बड़ी आबादी भूमिगत जल स्रोतों पर ही निर्भर है। इसके बावजूद पानी को सहेजने के कागजों पर ही इंतजाम हो रहे हैं। भूमिजल जल के अंधाधुंध दोहन से भूजल स्तर भी लगातार नीचे पहुंचता जा रहा है। गर्मी के दिनों में कई क्षेत्रों में भूजल का स्तर 500 फीट तक पहुंच जाएगा। जल विशेषज्ञों का मानना है कि बीते 20 साल में शहर की आबादी लगभग दोगुनी हो चुकी है, लेकिन जलस्रोत पुराने ही हैं। जनसंख्या के हिसाब से पानी की मांग भी बढ़ी है, तो जरूरत से ज्यादा दोहन भी किया जा रहा है। यदि अभी नहीं संभले तो कुछ साल बाद स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। पानी इतना नीचे चला जाएगा कि उसे ऊपर खींचने में दिक्कतें खड़ी होंगी। पानी के लिए पानी की तरह पैसा बहाना पड़ेगा, फिर भी नहीं मिलेगा। इसलिए बारिश की हर बूंद को सहेजा जाना चाहिए। रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जरिए जितना संभव हो, उतना पानी जमीन में उतारा जाए।
राजधानी में पिछले 15-20 साल में सीमेंट-क्रांकीट का जंगल खड़ा हो गया है। इससे पानी पर्याप्त मात्रा में जमीन में नहीं उतर पाता। इसके अलावा जलस्रोतों में पानी पहुंचने की रफ्तार भी धीमी हो गई है। कई बार तो नदी-तालाब सूखे ही रह जाते हैं। शहर की लाइफलाइन कहलाने वाला बड़ा तालाब भी कई बार सूखे का दंश झेलता है।
राजधानी में बारिश की हर बूंद को सहेजने की जरूरत है। इसके लिए कारगर तरीका रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है। इसके बावजूद यहां पर पानी को सहेजने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। अधिकांश लोग सिस्टम को लेकर जागरूक नहीं है। दूसरी ओर पिछले कुछ साल में शहर में जनसंख्या और दायरा लगातार बढ़ता गया, लेकिन पेयजल स्रोत नहीं बढ़े। जो 10-20 साल पहले जलस्रोत थे, वे अब भी है बल्कि रखरखाव नहीं होने से सिकुड़ रहे हैं। लोग भी जरूरत से ज्यादा पानी का दुरुपयोग करते हैं। हमें पानी के दोहन को रोकते हुए उसका सदुपयोग करना होगा। बारिश के पानी को हर स्तर पर सहेजने की जरूरत है।
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