सांसद के नाम पर कूट रचित पत्र तैयार करने का तत्कालीन वन मंडल अधिकारी पर लगा आरोप
कार्रवाई से बचने के लिए सांसद को रिश्वत के तौर पर पेश किया गया था मिठाई का डिब्बा व रुपए
सीधी।
तत्कालीन वन मंडलाधिकारी के द्वारा सांसद का लेटर पैड़ छपवाकर फजीवाड़े को अंजाम दिया गया था। लघुवनोपज का अध्यक्ष बनने के लिए सांसद के कूटरचित पत्र का सहारा लिया गया, इतना ही नहीं शिकायत पर बचने के लिए वो सांसद के सीधी आवास पर मिठाई का ठिब्बा व कुछ रुपए लेकर पहुंच गये, जिसे रखकर वापस लौट गये।
सांसद के द्वारा अपने निज सचिव से आवेदन दिलवाकर तत्कालीन वन मंडल अधिकारी के खिलाफ कोतवाली में शिकायत की गई थी, जिस पर कोतवाली पुलिस ने आरोपी वनमंडलाधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामला पंजीवद्ध कर लिया गया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक सीधी वनमंडल में पदस्थ तत्कालीन वनमंडलाधिकारी एसपी सिंह गहरवार के द्वारा लघु वनोपज का अध्यक्ष बनने के लिए सांसद के कूटरचित पत्र का उपयोग किया गया। उनके द्वारा 10 मार्च को पत्र क्रमांक 604 /सीएमएस/एमपी/ 011 /2021 अंकित कर प्रमुख सचिव वन विभाग के पास भेजा गया, जिसमें सांसद के द्वारा अनुशंशा की गई थी कि एसपी सिंह गहरवार को लघुवनोपज का अध्यक्ष बनाया जाए।
तब प्रमुख सचिव कार्यालय से सांसद रीति पाठक के पास फोन आया कि आपके पत्र पर कार्रवाई की जा रही है। सांसद के द्वारा मना करते हुए कहा गया कि मैंने इस तरह का कोई पत्र नहीं लिखा गया है। वहीं पत्र की प्रति की मांग की गई, जिसकी जानकारी सांसद के द्वारा मुख्यमंत्री को भी दी गई।
दिल्ली से वापस लौटने के बाद सांसद ने अपने निज सचिव हीरालाल यादव से कोतवाली पुलिस को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की गई।
जिस पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भादवि की धारा 420, 417, 419, 465, 469 के तहत मामला पंजीवद्ध कर लिया गया है।
मामला रफा-दफा करने के लिए रिश्वत देने का प्रयास
रोचक बात ये भी रही की फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद पूर्व मंडल अधिकारी एसपी सिंह गहरवार द्वारा सांसद को रिश्वत देने का भी प्रयास किया गया। सांसद के दिल्ली से वापस लौटने पर वो उनके आवास में जाकर मिठाई का डिब्बा व लिफाफे में कुछ रुपए रखकर वापस लौट आये, जिसे सांसद द्वारा कोतवाली पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया है।
इससे पूर्व में भी किया था फर्जीवाड़ा
बताया गया कि तत्कालीन वनमंडलाधिकारी ने सीधी में पदस्थ रहने के दौरान भी सांसद के फर्जी लेटर पैड का सहारा लिया था, जिसका खुलासा होने पर सांसद के द्वारा फटकार लगाते हुए हिदायत देकर मामले को पुलिस को नहीं सौंपा गया था, दूसरी बार फिर कूटरचना करने के कारण पुलिस तक मामले को पहुंचाया गया है।
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