गड्ढे नाली का पानी पीने को मजबूर आदिवासी परिवार,मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग
(सुधांशु द्विवेदी)भोपाल/शहडोल।
जिले के सोहागपुर जनपद अन्तर्गत लखवरिया पंचायत के करीब 300 लोगों की आबादी वाले गांव अमहाई (कोइलहा) वार्ड नंबर 7 के ग्रामीण आजादी के सात दशक बाद भी बिजली पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। आज भी यहां चिमनी या ढिबरी जला कर घरों में रोशनी की जाती है। । यहां पर करीब 80 प्रतिशत गोंड और बैगा जनजाति के लोगों का निवास है। तमाम योजनाएं हैं लेकिन शासन और प्रशासन की नजर यहां नहीं पड़ रही। गड्ढा खोदकर और झिरिया के पानी से गांव के लोग अपनी प्यास बुझाते हैं ।अमहाई सहित आसपास के अमलीखेरवा, नवाटोला आदि गांवों के करीब 400 से 500 आदिवासी ग्रामीण आज दशकों से गड्ढे या झिरिया का पानी पी रहे हैं जिससे अक्सर वे बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। गर्मी के दिनों मे झिरिया सूख जाती है तो दो किलोमीटर की चढाई उतर के धनौरा के पंचायत भवन में लगे हैंडपंप से पानी लाना पड़ता है। ग्राम अमहाई के आदिवासी बधाों खासकर लड़कियों ने प्राथमिक तक की पढाई के बाद स्कूल छोड दिया है। इन्हें करीब 1007200 फिट गहरी घाटी उतर के धनौरा स्कूल आना पड़ता है, जहां सिर्फ प्राथमिक तक की कक्षाएं ही हैं। जिसके बाद गांव की लड़कियां पढाई छोड देती थीं। इस स्कूल का बीते 2 वर्ष पहले उन्नयन कर के माध्यमिक तक की कक्षाएं संचालित की जाने लगी हैं तो अब गांव की लड़कियां आठवीं तक पढने के बाद प़ढ़ाई छोड़ रही हैं। गांव के सिर्फ दो या तीन लडकों ने स्नातक या आईटीआई जैसे डिप्लोमा आदि की पढाई की है । वह भी छात्रावास या किसी रिश्तेदार के यहां रह क र की है। यहां के नन्हे बच्चों ने आंगनबाड़ी का मुंह तक नहीं देखा है। बता दें कि अमहाई से लखवरिया का पंचायत भवन करीब 6 से 7 किलोमीटर दूर है। पड़ोस का धनौरा पंचायत मात्र 1से 2 किलोमीटर दूरी पर है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि अमहाई को लखवरिया की जगह धनौरा पंचायत से जोड़ दिया जाता तो हम कम से कम प्रतिदिन पंचायत भवन जा कर प्रतिनिधियों से गांव के लिए विकास कार्यों की मांग तो करते। इस गांव की पंचायत लखवरिया है जो यहां से 6 से 7 किलोमीटर दूर है और पूरा रास्ता पहाड़ और गहरी खाई से भरा है। अमहाई के ग्रामीणों को करीब 8 किलोमीटर दूर बेम्हौरी के उप स्वास्थ्य केन्द्र आना पडता है, लेकिन अमहाई से धनौरा के मुख्य सडक तक करीब दो किलामीटर मरीज को खटिया या डोली में लिटा के लाना पड़ता है। ऐसे में ग्रामीण जनों ने उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की है.
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