''दादा न होंहीं दईऊ आंहीं..." को हराने वाला नेता होंगे अब विधानसभा अध्यक्ष,विंध्य में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी का अनोखा इतिहास
सीधी की उपेक्षा के दंश के कारक खुद हैं भाजपाई...
(आर.बी.सिंह राज)भोपाल।
रीवा जिले के देवतालाब सीट से विधायक एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरीश गौतम (67) मध्यप्रदेश विधानसभा के नये अध्यक्ष होंगे। रविवार को नामांकन भरने का समय खत्म होने तक गिरीश गौतम एक मात्र प्रत्याशी रहे जिन्होंने नामांकन दाखिल किया है, इसलिए सोमवार को वह निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने जाएंगे।
अहम बात यह है कि कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करने की बात कही है, यानि चार बार के विधायक गिरीश गौतम निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष बनने जा रहे हैं।
इसके साथ ही भाजपा ने विंध्य क्षेत्र से कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे को भी सुलझाने की कोशिश की है। गिरीश गौतम के विधानसभा अध्यक्ष बनने के साथ मध्य प्रदेश की सियासत में एक अनोखा इतिहास भी बनने जा रहा हैं।
♦️ 'व्हाइट टाइगर' को हराने वाले नेता हैं गिरीश गौतम
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में विंध्य अंचल रीवा से आने वाले अजेय कद्दावर नेता स्व. श्रीनिवास तिवारी 10 साल विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रहे लेकिन विधानसभा चुनाव में गिरीश गौतम ने श्रीनिवास तिवारी के अजेय बने रहने पर ना केवल ब्रेक लगाया बल्कि श्री तिवारी के वर्चस्व को खत्म कर दिया।
गिरीश गौतम ने 2003 के विधानसभा मनगंवा सीट से जीत हासिल की थी। उसके बाद फिर श्रीनिवास तिवारी कभी चुनाव नहीं जीत पाए।
अब ये अजब संयोग बन रहा है कि अब विधानसभा अध्यक्ष के पद पर ही गिरीश गौतम की ताजपोशी होने जा रही है। हालांकि उनके इस ताजपोशी से सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ल का सपना चकनाचूर हो गया है।
♦️ श्रीनिवास तिवारी के हार जीत पर प्रदेश की सियासत पर नजर
बतलाते हैं कि मध्य प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में श्रीनिवास तिवारी को व्हाइट टाइगर के नाम से जाना जाता था। मशहूर नेता श्रीनिवास तिवारी 2003 में रीवा जिले की मनगंवा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में अपने अंदाज में चुनाव लड़े थे। वे विंध्य के ऐसे नेता थे जिनको लेकर उनके समर्थकों ने बघेली में एक नारा बनाया था-
''दादा नहीं दईऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय''।
मतलब दादा को अगर वोट नहीं भी दिया जाएगा तो भी वे चुनाव जीतेंगे। इसी नारे के साथ उनके समर्थक 2003 के विधानसभा चुनाव में श्रीनिवास तिवारी का प्रचार कर रहे थे, लेकिन इसी चुनाव में बीजेपी ने दादा के इसी नारे के आगे एक लाइन और जोड़ दी थी जिसमें लिखा गया कि-
''दादा नहीं दईऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय'' और 5 साल का छईऊ आंए।"
बीजेपी के इस नारे को लोगों का समर्थन मिला और दादा श्रीनिवास तिवारी चुनाव हार गए।
♦️ ''दादा नहीं दईऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय'' नारे को थी दादा की मौन स्वीकृति
बता दें कि 2003 के विधानसभा चुनाव में व्हाइट टाइगर श्रीनिवास तिवारी के लिए उनके समर्थको ने ''दादा नहीं दईऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय'' नारा दिया । राजनीतिक जानकार बताते हैं कि श्रीनिवास तिवारी, जो 10 साल से विधानसभा के अध्यक्ष थे, उन्होंने भी इस नारे को मौन सहमति दे दी थी, क्योंकि वे अपनी जीत को लेकर पूर्णरूपेण आश्वस्त थे।
लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तो मध्य प्रदेश में 10 साल से जमी कांग्रेस की सत्ता सहित विधानसभा अध्यक्ष और विंध्य के टाइगर कहे जाने वाले श्रीनिवास तिवारी भी चुनाव हार गए और तब से लेकर आज तक पूरे विंध्य में भी कांग्रेस का लगातार पतन होता गया।
♦️ 2003 चुनाव में BJP का नारा था ''दादा नहीं दाई है इस बार विदाई है''
बतलाते हैं कि श्रीनिवास तिवारी की धमक ऐसी थी अच्छे-अच्छों के तेवर ढीले पड़ जाते थे। 2003 विधानसभा चुनाव में श्रीनिवास तिवारी के सामने बीजेपी ने गिरीश गौतम को चुनावी मैदान में उतारा था। एक तरफ श्रीनिवास तिवारी के समर्थक पूरे जोश में थे, तो दूसरी तरफ गिरीश गौतम सधे हुए अंदाज में अपनी जमीन तैयार करते हुए अपना चुनाव प्रचार कर रहे थे। चुनाव में अहम बात रही कि दादा के समर्थकों के नारे को बदलते हुए गिरीश गौतम के समर्थकों ने भी एक नारा बनाया ''दादा नहीं दाई है इस बार विदाई है'' जिसका मतलब था कि इस बार दादा (White Tiger) का चुनाव हारना तय है। क्योंकि जनता ने उनकी विदाई का मन बना लिया है।
♦️ चुनाव परिणाम आने के बाद विंध्य की बदली फिजा
जब 2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो मध्य प्रदेश सहित विंध्य की फिजा ही बदल गई। ना सिर्फ 10 साल से जमी कांग्रेस की सत्ता की जड़़ें उखड़ गईं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष और विंध्य के टाइगर कहे जाने वाले श्रीनिवास तिवारी भी चुनाव हार गए।
गिरीश गौतम ने एक दिग्गज नेता को चुनाव हराया था। इस चुनाव के बाद से ही विंध्य में बीजेपी का दबदबा बनना शुरू हुआ था। राजनीतिक जानकारों की माने तो ''दादा नहीं दईऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय'' नारे को दादा की मौन सुकृत देना सबसे बड़ी भूल साबित हुई इस नारे से पूरे क्षेत्र में दादा के खिलाफ एक निगेटिव माहौल बना और वो चुनाव हार गए।
♦️ गिरीश गौतम पर चुनाव हारने के लगे थे आरोप
गिरीश गौतम ने अपनी सियासी पारी 1977 में छात्र राजनीति से शुरू की। वो 2003 से 2018 तक लगातार चौथी बार दो अलग-अलग सीटों से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। उन्होंने 1993 व 98 सीपीआई
(Communist Party of India) से विधानसभा का चुनाव लड़ा। तब पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के हाथों ही गिरीश गौतम को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि इन चुनावों में गिरीश द्विवेदी के ऊपर पैसे लेकर चुनाव हारने के भी आरोप लगे थे। गिरीश गौतम इसके बाद 2008, 2013 और 2018 में देवतालाब से विधायक बने। इस प्रकार वो लगातार चौथी बार विधायक बने हैं। ऐसे में अब बीजेपी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपने जा रही हैं।
♦️ सिंधिया के चक्कर में विंध्य को नहीं मिला नेतृत्व
विंध्य से आने वाले नेता गिरीश गौतम को विधानसभा अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। शिवराज सरकार जबसे सूबे में चौथी बार सत्ता में आई है तभी से विंध्य क्षेत्र में विरोध की लहरें तेज हैं। क्योंकि सीएम शिवराज ने अपनी टीम में सिंधिया गुट के नेताओं को भरपूर मौका दिया और जिस विंध्य ने 2018 के चुनाव में भाजपा की इज्जत बचाई वहां से सिर्फ एक नेता को मंत्री बनाया गया। इसके अलावा बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग कर रहे हैं लेकिन विंध्य से आने वाले गिरीश गौतम को बड़ा पद देकर विंध्य को महत्व दिया जा रहा है।
♦️ गिरीश गौतम का राजनैतिक सफर...
रीवा जिले के देवतालाब विधानसभा क्षेत्र से विधायक गिरीश गौतम ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कम्युनिस्ट पार्टी से की थी। 1975 से गिरीश गौतम सक्रिय राजनीति में उतरे थे, जिसके बाद लगातार संघर्षों के बाद उन्होंने कई विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें 1985 में उन्होंने पहली बार जिले की गुढ़ विधानसभा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा। 1993 और 1998 के चुनावों में उन्होंने रीवा जिले के मनगवां विधानसभा से उस समय के कांग्रेस के कद्दावर नेता श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ कम मतों के अंतर से चुनाव हार गए।
इसी बीच गिरीश गौतम भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और उनकी किस्मत खुल गई, 2003 के विधानसभा चुनाव में मनगवां विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने लगभग 28000 मतों के अंतर से कांग्रेस के श्रीनिवास तिवारी को चुनाव हराया और उसके बाद फिर कभी मुड़कर नहीं देखा।
अगले चुनाव में यानी 2008 में मनगवां विधानसभा क्षेत्र आरक्षित कर दिया गया तब गिरीश गौतम ने अपना विधानसभा क्षेत्र रीवा के देवतालाब को बनाया और फिर क्रमश: 2008, 2013 और 2018 का चुनाव जीते, हालांकि इतने चुनाव जीतने के बाद भी कभी भी उन्हें सरकार में कोई बड़ा पद नहीं दिया गया, जिसके बाद जब चौथी बार शिवराज सरकार बनी तब उन्होंने स्वयं को मंत्री बनाए जाने का पक्ष रखा था, राजनीतिक मजबूरियों के कारण वह मंत्री तो नहीं बन पाए लेकिन अब उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया है जहां एक और लंबे समय से कोई बड़ा पद ना दिए जाने के कारण गिरीश गौतम अब खुश होंगे वहीं दूसरी ओर विंध्य क्षेत्र और विशेषकर रीवा को प्रतिनिधित्व भी मिल जाएगाl
सीधी को उपेक्षा का दंश...
प्रदेश में अतीत में जब-जब कांग्रेस की सरकारे़ं बनीं उस वक्त सीधी जिले से एक की बजाय दो-दो लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी जाती रही है। अभी हाल में ही कमलनाथ सरकार में सीधी जिले से कमलेश्वर पटेल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था।
पिछले चार बार से प्रदेश में भाजपा की सरकार है परंतु आज तक सीधी जिले को मंत्री या अन्य मंत्री दर्जे के समकक्ष कोई भी पद कभी भी नहीं दिए गए हैं।
हालांकि इस मामले में एक दूसरा पहलू भी बेहद महत्वपूर्ण है जिसमें सीधी जिले के भाजपा के भीतर की गुटबाजी और एक दूसरे के प्रति दुर्भावना और द्वेष के नित नए खुलेआम चलने वाले खेल के चलते सीधी जिले के भाजपा के नेताओं ने प्रदेश स्तर पर अपनी छवि बेहद धूमिल कर रखी है, जिसके कारण सीधी जिले में भाजपा के तीन विधायक होने के बावजूद यहां के विधायकों को मंत्री पद से नवाजने में प्रदेश संगठन और भाजपा सरकार की कोई रुचि कभी नहीं रहती।
परिणामत: चौथी बार बनी भाजपा की सरकार में सीधी जिला अपनी उपेक्षा का दंश लगातार झेल रहा है।
0 टिप्पणियाँ