सीधी:प्रहलाद के हत्यारे को आजीवन कारावास की सजा

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सीधी:प्रहलाद के हत्यारे को आजीवन कारावास की सजा



सीधी:प्रहलाद के हत्यारे को आजीवन कारावास की सजा 



सीधी।
जिले के चुरहट थाना अंतर्गत चर्चित हत्याकांड मामले में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
 वार्ड क्र. 1 के निवासी प्रहलाद कोल की हत्या मामले को लेकर विशेष न्यायाधीश श्रीमती ममता जैन ने निर्णय सुनाते हुए थाना चुरहट के अपराध क्र. 373/19 अभियुक्त अजय उर्फ अज्जू उम्र 40 वर्ष निवासी चुरहट वार्ड क्र. 1 को हत्या के आरोप में दोषी मानते हुए आजीवन कारावास व 5000 रू के अर्थदंड से दंडित किया है। 
प्रकरण की संक्षिप्त कहानी यह है कि 5 अगस्त 2019 को मृतक का पुत्र वीरेंद्र जो कि चुरहट के एक व्यापारी का वाहन चालक है और सतना से लौटते वक्त चुरहट के बूढ़ीमाई मंदिर के पास एक व्यक्ति को गिरा हुआ देखा तब अपना वाहन रोककर देखा तो उसके पिता प्रहलाद कोल पड़े हुये थे। प्रहलाद कोल के पीठ, हाथ-पैर में चोटें थी। तब वीरेंद्र ने पूछा कि क्या हुआ, तब मृतक प्रहलाद ने वीरेंद्र से बताया था कि आज नागपंचमी के अवसर पर बूढ़ीमाता मंदिर दर्शन करने गया था, लौटते वक्त अभियुक्त अजय सिंह उर्फ अज्जू द्वारा उसके साथ मारपीट की गई जिसके कारण से उसे चोटें आई हैं। तब वीरेंद्र अपने पिता को अपने घर ले आया और अस्पताल में उपचार के दौरान मृत्यु हो गई थी। घटना की रिपोर्ट पुलिस थाना चुरहट में की जाने पर पुलिस द्वारा भादवि की धारा 302 एवं एससी, एसटी एक्ट के तहत प्रकरण पंजीबद्ध कर विवेचना उपरांत न्यायालय में चालान पेश किया गया। विशेष न्यायालय सीधी में अभियोजन साक्षियों के प्रतिपरीक्षण पश्चात न्यायालय ने अभियुक्त को दोषी पाया। उक्त अपराध में अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपने तर्क प्रस्तुत करते हुये दो-तीन प्रमुख बिंदुओ की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित कराया कि विवेचना का अधिकार चुरहट के तत्कालीन निरीक्षक अशोक पांडेय को नहीं था। इस बिंदु पर कई न्याय दृष्टांत भी दिये किंतु न्यायालय ने माना कि उपरोक्त केस में विवेचना का अधिकार निरीक्षक को था। इस केस की विवेचना निरीक्षक अशोक पांडेय एवं डीएसपी लक्ष्मण अनुरागी के द्वारा की गई थी। इस केस में प्रत्यक्षदर्शी साक्षी कोई नहीं था। साक्ष्य प्रमुख रूप से मृतक का मृत्युकालिक कथन था। मृतक द्वारा उसके साथ किसने मारपीट की। अपने परिजनों के समक्ष किया था। इस बिंदु पर न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि मृतक का मृत्युकालिक जो कथन किया गया है वह विधि के अनुरूप होने से सही है। इस प्रकरण में मृतक का लडका वीरेंद्र के द्वारा न्यायालय में मुख्य परीक्षण के दौरान घटना के बारे मे बताया था लेकिन कुछ कारणवश उक्त दिनांक को मुख्य परीक्षण रोका गया था और अगले दिन हुआ था और अगले दिन मृतक का पुत्र वीरेंद्र जो कि रिपोर्ट किया था वह पक्षद्रोही हो गया था। इस बिंदु पर विद्वान न्यायाधीश द्वारा न्याय दृष्टांत के सहारे वीरेंद्र के मुख्य परीक्षण के साक्ष्य को ग्राह्य मानते हुये आरोपी को आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया गया। अभियोजन की ओर से विशेष लोक अभियोजक सुखेंद्र द्विवेदी के द्वारा प्रकरण की पैरवी की गई।

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