सुशासन को मजबूत बनाना यूपी के सीएम से सीखें शिवराज- सुधांशु द्विवेदी, अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं स्तंभकार
भोपाल।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों स्वयं को बहुत बड़े खलीफा की तरह प्रस्तुत करने के प्रयासों के तहत भाषा की मर्यादा और पद की गरिमा को तार- तार करते नजर आ रहे हैं. कभी मंत्रियों- अधिकारियों के साथ वर्चुअल संवाद तो कभी जन सभाओं में मैंने फलां व्यक्ति को डान्टा तो कभी गुंडों को जमीन में खोदकर गाड़ दूंगा जैसी भाषा बोलते समय शिवराज को इतनी अक्ल नहीं रहती कि वह एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं और इस तरह की भाषा बोलना न तो मर्यादित और पद की गरिमा के हिसाब से उपयुक्त है और न ही उनके अधिकार क्षेत्र का विषय है. गुंडों पर नकेल कसना पुलिस का काम है तो डांटने फटकारने का फार्मूला तो सबसे अधिक शिवराज पर ही लागू होता है, जिसमें वह कभी भी मोदी और शाह के कोप भाजन का शिकार हो सकते हैं. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड कि जिस रिपोर्ट को लेकर प्रदेश में बवाल मचा हुआ है तथा कई नेताओं और अधिकारियों पर शिकंजा कसने की संभावनाएं प्रबल है. उसमें 10 करोड़ के लेन-देन का जिक्र शिवराज का भी है. मध्यप्रदेश में सुशासन की दृष्टि से व्यवस्थाएं लचर हैं. भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लग पा रही. शासकीय योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन का मिशन अधूरा है. प्रदेश में बेरोजगारी चरम पर है. जन सरोकारों को लेकर विरोध और धरना प्रदर्शन का दौर प्रदेश में बदस्तूर जारी है. ऐसे में शिवराज को अनावश्यक खलीफा बनने के बजाय सुशासन को मजबूत करने के मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ का अनुसरण करना चाहिए. जो राज्य के सीमित साधनों संसाधनों में अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में लगातार कामयाब हो रहे हैं. शिवराज से उलट योगी आदित्यनाथ के संवाद में भाषा की मर्यादा, अनुशासन एवं सम्मान की झलक स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होती है. वह लक्ष्य निष्ठ ढंग से अपने राज्य की बेहतरी के लिए लगातार काम कर रहे हैं. लोकतंत्र में व्यवस्था सिस्टम के तहत चलती है. जिसमें सभी की अपनी अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही होती है, कर्तव्य और अधिकारों का दायरा होता है. लोकतंत्र में मूल्यों, मर्यादाओं और प्रतिबद्धताओं का विशेष महत्व रहता है. शिवराज सिंह को इस बात की समझ तो होनी ही चाहिए.
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