सीएम हाउस में आवेदन देने के बाद भी नहीं मिली मदद,कोरोना से हुई थी मौत
(सुधांशू द्विवेदी)भोपाल।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना वायरस के चलते पहली मौत इब्राहिमगंज में रहने वाले 52 वर्षीय नरेश खटीक की हुई थी। वे चौकीदारी का काम करते थे। परिवारों को हमेशा इस बात का मलाल रहेगा कि कोरोना वायरस से मौत होने के कारण अंतिम समय में वो नरेश खटीक का चेहरा भी न देख सके। उनके बेटे ने बताया कि वैक्सीनेशन शुरू हो रहा है, अच्छी बात है। अब कोई मेरी तरह कोरोना से अपने पिता को नहीं खोएगा। मृतक नरेश के छोटे बेटे गौरव खटीक ने बताया कि 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद पिता को अस्थमा हो गया था। लंबे समय से उनका इलाज चल रहा था। पापा बिट्टन मार्केट में चौकीदार थे। तीन महीने से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। 2 अप्रैल की दरमियानी रात को अचानक उनकी सांस तेज चलने लगी। इलाज के लिए एलबीएस अस्पताल संपर्क किया। लेकिन उन्होंने मरीज की हालत के बारे में सुनकर इलाज करने से इंकार कर दिया। इसके बाद हयात अस्पताल में पिता को भर्ती नहीं किया। लेकिन गिड़गिड़ाने पर डॉक्टर्स ने कंडीशन देखकर एक इंजेक्शन लगाया। इसके बाद बाइक से जैसे-तैसे नर्मदा अस्पताल पहुंचे, यहां पर उनको भर्ती किया गया। 3 मार्च को डॉक्टर्स ने कोरोना की जांच के लिए सैंपल लिया। चार मार्च को पापा की तबीयत खराब होने पर उनको वेंटिलेटर लगा दिया। 5 मार्च को जब पापा की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बाद में देर रात डॉक्टर्स ने उनको मृत घोषित कर दिया।
पिता की मौत की खबर मां को हमने उस रात में नहीं दी थी। सिर्फ बड़े भैया कुनाल और मुझे इसकी सूचना अस्पताल प्रबंधन ने दी थी। मां पिताजी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई थीं। सिर्फ दूर से ही एंबुलेंस में दिखाया गया। मां को जिंदगी भर यही दर्द रहेगा कि अंतिम समय में वो उनके दर्शन नहीं कर पाईं। अभी हमारे परिवार के हालात बहुत खराब है। आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। पिता के इलाज के लिए लगभग 1 लाख रुपए का जो कर्ज लिया था। वो कर्ज चुका रहे हैं। मैं पिता की जगह चौकीदारी कर रहा हूं। भाई भी चौकीदारी कर रहा है। सरकार से मदद की उम्मीद लगाकर बैठे थे, वहां से कुछ भी नहीं मिला। कई जगह सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाए। सीएम हाउस में भी आवेदन दिया, लेकिन काेई मदद नहीं मिली।
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