सुसाइड नोट लेकर गई थी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पास: आंतरिक समस्याओं का निराकरण कर खुशी खुशी किया गया घर रवाना

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सुसाइड नोट लेकर गई थी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पास: आंतरिक समस्याओं का निराकरण कर खुशी खुशी किया गया घर रवाना




सुसाइड नोट लेकर गई थी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पास: आंतरिक समस्याओं का निराकरण कर खुशी खुशी किया गया घर रवाना
  

पुलिस तथा सखी सेंटर के संयुक्त प्रयास का नतीजा


सीधी।     
पुलिस अधीक्षक के मार्गदर्शन व सखी सेंटर सीधी के प्रयास व समझाइस की बदौलत दो बिखरे हुए परिवारों की आपसी दरार को खत्म करते हुए एक करवाया है। 

सुसाइड के मुहाने से निकाला बाहर:-

इस सार्थक प्रशासनिक पहल के पहले मामले में शीला (परिवर्तित नाम) अपने हाथ में सुसाइट नोट लेकर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सीधी के पास गई थी, जिसे अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सीधी द्वारा वन स्टाप सेंटर सीधी भेजा गया। वन स्टाप सेंटर (सखी सेंटर) सीधी में बालिका से पूछताछ व काउंसलिंग शुरू की गई। व्यथित बालिका की उम्र 17 वर्ष थी उसका कहना था कि मैं एक लड़के के प्रेम में पड़कर 6 माह पहले अपने माता पिता की मर्जी के विरुद्ध अपना घर छोड़ कर शहर में किराए का कमरा ले कर रहती थी। सिलाई कर के अपना खर्च चलाती रही लेकिन अब वो लड़का भी मुझसे दूरी बना लिया और पिता जी घर में रहने नहीं देंगे इसलिए मैं क्षुब्ध होकर आत्महत्या करना चाहती हूं और चाहती हूं कि मेरे न रहने पर किसी को दोषी न ठहराया जाए यह मेरा स्वयं का निर्णय है।
              बालिका के पास उस सुसाइट नोट की कई प्रतियां थीं जिसे कलेक्टर व एसपी को दे कर आईं थी और अपने पिता का नाम और पता कुछ भी नहीं बता रही थी एवं 2 दिन से खाना भी नहीं खाई थी। वन स्टाप सेंटर की काउंसलर द्वारा मित्रवत व्यवहार करके उससे पिता का नाम व मोबाइल नंबर पूछा गया तथा काफी देर तक काउंसलिंग की गई। शीला के पिता से बात करने पर उन्होंने गुस्से में पहले तो मना कर दिया कि उसके बारे में कोई बात नहीं करनी है उसके बाद फोन पर ही शीला के पिता की काउंसलिंग की गई और बताया गया कि अपनी नफरत से आप अपनी बच्ची खो सकते हैं। शीला के पिता फोन पर ही फूट फूट कर रोने लगे जिसे सुनकर शीला भी रोने लगी। उन्होंने बताया कि मेरी बड़ी और लाडली बेटी शीला है लेकिन मेरी बात नहीं मानी इस लिए मैं नाराज था।
               दोनों पिता और बेटी की काउंसलिंग की गयी। पिता का कहना था कि अभी भी आप लोग मेरी बेटी को घर भेजवा दीजिए मैं अपनी बेटी खोना नहीं चाहता हूं। पिता की बात सुनकर शीला भी भावुक हो गई और पुनः उसमे जीने इच्छा जाग गई। शीला को सखी सेंटर में आश्रय के तहत रखा गया और गहन एवं भावनात्मक रूप से काउंसलिंग किया गया। बालिका अपने पिता की छोटी नाराजगी को नफरत समझ बैठी थी, पुनः फोन पर उनका प्यार पाकर उसकी प्यारी सी मुस्कान वापस आ गई क्यूंकि उसे देखने से ऐसा लग रहा था कि पिछले कई दिनों बालिका मानसिक तनाव से गुजर रही थी। शीला के पिता बाहर कहीं काम करते थे इसलिए शीला की मां को बुला कर उन्हे उनकी बेटी सुपुर्द किया गया। उस वक्त शीला खिलखिलाती हुई अपनी मां से लिपट गई और दोनों की आंखे नम हो गईं। दोनों को उचित परामर्श देते हुए सखी सेंटर सीधी से विदा किया गया।

देवर-भाभी के मामले को निपटाया:-
           
इस सार्थक प्रशासनिक पहल के दूसरे मामले में पीड़िता सविता सोनी ( परिवर्तित नाम ) ने हेल्पलाइन 181 पर शिकायत की थी कि मेरे पति बाहर मजदूरी करते हैं, मैं बच्चे लेकर घर में रहती हूं। मेरे देवर मेरे बच्चे को अपने घर के रास्ते से निकलने नहीं दे रहे हैं जब मैं मना की तो मेरे साथ बुरी तरह मारपीट किए जिस पर ससुर भी कुछ नहीं बोले। बीते 11 जनवरी को प्रशासक सरस्वती तिवारी के निर्देशन में दोनों पक्षों को वन स्टाप सेंटर सीधी बुलाया गया दोनों पक्षों की एक्सपर्ट काउंसलर्स द्वारा काउंसलिंग किया गया। अनावेदक रंजीत को स्वयं अपनी ग़लती का एहसास हुआ और अपनी भाभी से कार्यालय में माफी मांगकर  दुबारा ऐसा कभी नहीं करेगा इस बात अश्वासन दिलाया।
             रंजीत के पिता की भी काउंसलिंग किया गया, रंजीत अपनी भाभी और बच्चों को अपने साथ लेकर राजी खुशी अपने गृहग्राम रामपुर नैकिन रवाना हुआ।

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