सार्थक संवाद से ही किसानों की समस्याओं का समाधान--सुधांशु द्विवेदी पत्रकार एवं स्तंभकार
दिल्ली में जारी किसान आंदोलन के कराब एक महीने व्यतीत होने को हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध के साथ उनके लाभकारी पहलुओं पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा है। केन्द्र सरकार ने जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर अध्यादेश जारी किया है, उनमें व्याप्त खामियों और इन कानूनों से माफियाओं के लाभान्वित होने की जो आशंका किसान संगठनों द्वारा जताई जा रही है। उसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्र सरकार के अन्य प्रतिनिधि पहले ही किसान संगठनों को आश्वस्त कर चुके हैं कि हमें किसानों के हितों का पूरा ध्यान है और कृषि कानूनों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होगा, जिनके चलते किसानों के हितों और उनकी भलाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। एमएसपी खत्म नहीं की जाएगी और मंडियां भी संचालित होती रहेंगी। बार- बार ऐसा भरोसा दिलाकर केन्द्रीय कृषिमंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध समाप्त करने की कोशिश की है। लेकिन किसान आंदोलन के नाम पर कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों के लोग किसानों को गुमराह और हतोत्साहित करके वार्ता को बेपटरी करने की साजिश रच रहे हैं। आंदोलन में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं जो अपनी हिंसक गतिविधियों, सोच और हरकतों के कारण पूरे आंदोलन को ही विकृत और उद्देश्य विहीन और दिशाहीन बना देना चाहते हैं। किसान सगठनों की चिंताओं और उलझनों का प्रभावी समाधान सुनिश्चित करना केन्द्र का अधिकार और कर्तव्य भी है तथा सरकारी स्तर पर इस मामले में प्रभावी पहल भी की गई है तथा केन्द्र की ओर से किसानों को भरोसा दिलाया गया है कि उनके हितों का पूरा ख्याल रखा जाएगा। ऐसे में अब किसान संगठनों की यह जिम्मेदारी है कि वह उन विग्रहवादी और विघटनकारी तत्वों को इस आंदोलन और वार्ता से दूर रखें ताकि केन्द्र और किसान संगठनों के बीच सार्थक संवाद पूरी तरह परिणामदायक हो सके। देश की आजादी के बाद से ही राज्यों में एवं राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के नाम पर राजनीति तो बहुत होती रही है, राजनीतिक दलों द्वारा अपने सियासी फायदे के लिये किसानों और उनसे जुड़े हुए मुद्दों का बहुतायत में उपयोग तो होता रहा है लेकिन किसानों की वास्तविक भलाई की दिशा में ईमानदारीपूर्ण एवं करागर ढंग से कार्यों को राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं द्वारा अंजाम नहीं दिया गया। यही कारण है कि किसानों की स्थिति बद से बदतर होती गई है। अगर किसानों के उत्थान एवं कल्याण की दिशा में कुछ काम हुए भी तो उन्हें धरातल पर कम और कागजी खानापूर्ति के रूप में अधिक अंजाम दिया गया। इसलिये मौजूदा परिस्थितियों को तकाजा यही है कि इस आंदोलन को लेकर सार्थक संवाद हो और वह पूरी तरह परिणामदायक और उत्साहवर्धक रहे। क्यों कि इस किसान आंदोलन की चर्चा सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी हो रही है। भारत के इस किसान आंदोलन पर दुनियाभर की नजर है। ऐसे में आगाज से अंजाम तक सभी कुछ मंगलकारी ही होना चाहिये।
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