विधायक बिकने का मतलब यह नहीं है कि जनता बिक गई है, वह चुनाव में जवाब देगी - अजय सिंह
सिंधिया के पाला बदलने से ग्वालियर चम्बल का हर कांग्रेसी अब आजाद है
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महेंद्र सिंह सिसोदिया जन सेवा के लिए विधायक बने थे या सिंधिया की गुलामी के लिए
भोपाल।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह आज कमलनाथ के साथ बमोरी पंहुचे| उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने के बाद से ग्वालियर चम्बल संभाग का एक एक कांग्रेस कार्यकर्ता आज अपने आप को वास्तव में स्वतंत्र महसूस कर रहा है| वह अब एकाधिकारवाद से आजाद है| आजाद नहीं हैं तो केवल महेंद्र सिंह सिसोदिया, जो अभी भी कहते फिर रहे हैं कि मैं तो सिंधिया के जूते उठाने लायक हूँ| मैं पूछना चाहता हूँ कि वे जनता की सेवा करने के लिए विधायक बने थे या सिंधिया के जूते उठाने के लिए| शर्म आना चाहिए ऐसी गुलामी पर| उनके दादा सागर सिंह सिसोदिया जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी| वे एक सच्चे कांग्रेसी थे| आज उनकी आत्मा दुखी हो रही होगी कि पोता कहाँ भटक गया है|
अजयसिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी के.एल. अग्रवाल के पक्ष में भीड़ भरी चुनावी सभा में कहा कि एक सुरेश धाकड़ हैं जो कहते हैं कि मैं सिंधिया की वजह से भाजपा में बिका| वे जरुर अपना ईमान खोकर बिक गए लेकिन बमोरी की खुद्दार जनता नहीं बिकी है| वह तीन तारीख को यह बात सिद्ध कर देगी कि जब कांग्रेस के कन्हैयालाल अग्रवाल जीत का परचम लहरायेंगे| गुना बमोरी का कोई व्यापारी बाकी नहीं हैं जिससे सिसोदिया के जमाने में उगाही न की गई हो| सिसोदिया को तो बमोरी आने की फुरसत नहीं थी| वे भोपाल में कहाँ गुलछर्रे उड़ा रहे थे यह मैं चुनाव के बाद उजागर करूँगा| इसी तरह महाराज के एक और गुलाम सुरखी में हैं गोविन्द सिंह राजपूत, जो छोटे महाराज बन बैठे हैं और अपनी गुंडागर्दी से अपने ही कांग्रेस साथियों को पनपने नहीं देते|
अजयसिंह ने कहा कि मैं भी छः बार का विधायक हूँ| सत्तर के दशक में मैं यहाँ के जंगल घूमने आया था| सिंधिया की चौधराहट के कारण कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता ग्वालियर चम्बल संभाग में उनकी इच्छा के बिना यहाँ नहीं आता था| मेरे पिता तीन बार मुख्यमंत्री रहे| उनके साथ 1984 में मैं तब इस क्षेत्र में आया था जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने खाद कारखाने का उद्घाटन किया था| उसके बाद आज 36 साल बाद बमोरी आया हूँ जबकि मेरे ममिया ससुर (दिग्विजय सिंह) यहीं के हैं| उन्होंने विनोदी भाव से जयवर्धनसिंह की और मुखातिब होते हुए कहा कि मैं साले साहब से आग्रह करता हूँ कि कभी कभी मुझे भी यहाँ बुला लिया करें|
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