जोगी जी जैसा जीवट आजतक नहीं देखा! स्मृतिशेष/जयराम शुक्ल
अजीत जोगी नहीं रहे..! वे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। कुशाग्रता उनसे अर्थ पाती थी। उनसे मेरी कुलजमा दो-तीन मुलाकातें हुईं।
पहली बार तब जब वे दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करने का अभियान चला रहे थे तब भोपाल में। कांग्रेस भवन का वह नजारा सब को याद होगा जब जोगी-दिग्विजय सिंह के समर्थकों के बीच जबरदस्त भिड़ंत हुई थी।
जोगी ने अनुसूचित जनजाति के विधायकों को लामबंद करके दिल्ली आलाकमान में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोक दी थी। कोई तीस से ज्यादा विधायक लेकर दिल्ली पहुँचे थे।
कम लोगों को ही पता होगा कि बिसाहूलाल सिंह इसी घटनाक्रम से निकले थे। हुआ यह कि पहले साथ दे रहे बिसाहूलाल सिंह ने अजीत गुट से विद्रोह कर दिया और दिग्विजय सिंह के पक्ष में बयान देकर जोगी के अभियान की हवा निकाल दी।
बिसाहूलाल के इस पैतरे के पीछे डा.अमरसिंह थे जो उन दिनों मुख्यमंत्री के सचिव व अत्यंत पावरफुल नौकरशाह थे। बिसाहूलाल को इसका प्रतिसाद मिला और अगले महीने ही राज्यमंत्री बना दिए गए।
यह इत्तेफाक ही था कि बिसाहूलाल जी की डा.अमरसिंह से पहली भेंट मेरे साथ ही हुई थी या यों कहिए मैंने ही मिलवाया था, यद्यपि बिसाहूलाल से मेरा कोई परिचय भी नहीं था।
हुआ यह था कि शहडोल के मेरे मित्र रविकरण त्रिपाठी ने आग्रह किया था कि विधायक जी का कुछ मामला जमवाइए। डा.अमर सिंह रीवा कलेक्टर के तौर पर बेहद चर्चित व लोकप्रिय रह चुके थे और उनसे मेरी गाढ़ी मित्रता था।
सो बिसाहूलाल सिंह की राजनीतिक बिसात के पीछे कही न कहीं जोगी फैक्टर था। बिसाहूलाल जी को उसी पैतरें पर आज भी भरोसा है।
अजीत जोगी एक बार शहडोल से लोकसभा चुनाव भी लड़े थे लेकिन दलवीर सिंह ने उन्हें वहां टिकने नहीं दिया वे वह चुनाव हार गए..।
जोगी जी में स्मरणशक्ति कमाल की थी वे जिससे एक बार मिल लेते उसे हमेशा याद रखते। उनमें समय व वातावरण के साथ ढ़लने की गजब की क्षमता थी।
जब सीधी के कलेक्टर थे तब उन्होंने रिमही बोलनी सीखी..वैसे भी रिमही छत्तीसगढ़ी में ज्यादा फर्क नहीं। यदि उन्हें पता चलता कि फँला व्यक्ति विंध्य का है तो उससे रिमही में ही बात करते।
कुँवर अर्जुन सिंह, श्रीनिवास तिवारी से वे रिमही में ही बात करते। जब वे ह्वीलचेयर पर आ गए थे व दिल्ली में ही रह रहे थे तब तत्कालीन स्पीकर श्रीनिवास तिवारी के साथ उनसे वहां भेंट करने गया था।
मैं देखकर चकित और मुदित था कि जोगीजी ने तिवारी जी के पाँव पर सिर धरकर जुहार की। वे प्रत्यक्षतः अपने वरिष्ठों का ऐसे ही सम्मान व अभिवादन करते थे। वे जादुई व्यक्तित्व के धनी थे कोई एक बार उनसे मिलने के बाद कभी नहीं भूलता था।
छत्तीसगढ़ में श्यामा व विद्या भैय्या की जमीन खिसकाने के लिए वहां उनकी प्लांटिंग में अर्जुन सिंह ने भरपूर मदद की, 10 जनपथ और मिशनरी लाँबी का उनपर वरदहस्त था ही।
राजनीति तड़ित की तरह चंचल और भुजंग की भाँति कुटिल होती है जोगीजी ने इसे चरितार्थ करके दिखाया। जिन दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए इतना पराक्रम किया उन्हीं दिग्विजय सिंह को रायपुर जाकर जोगीजी की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी करने का जिम्मा दिया गया।
विद्याचरण शुक्ल के समर्थकों ने दिग्विजय व केंद्र से भेजे गए गुलाम नबी आजाद की अच्छी लानत-मलानत की थी पर दिग्विजय सिंह 10 जनपथ के टास्क को सफलतापूर्वक पूरा करके ही लौटे..। इसके बाद से छत्तीसगढ़ से शुक्ल बंधुओं की ऐसी जमीन खिसकी कि दुबारा पाँव ही नहीं जम पाए।
उनकी एक स्टोरी मैंने 'डैमोक्रेटिक वर्ल्ड' में छापी थी सनसनीखेज बनाकर। एमबीडी ग्रुप 'डैमोक्रेटिक वर्ल्ड' भोपाल से निकलने वाला एक शानदार ग्लासी वीकली था जिसमें मैं कुछ महीने संपादकीय दायित्व में रहा। उस स्टोरी का शायद शीर्षक था 'अँग्रेजी से डरकर जोगी ने की थी आत्महत्या की कोशिश'।
दरअसल यह मामला उनके छात्र जीवन का था। वे मैनिट भोपाल से बीटेक कर रहे थे। यहां की पढ़ाई अँग्रेजी में होती थी..जोगी ने किसी इंटरव्यू या संस्मरण में यह बात कही थी कि वे अँग्रेजी बोलने वालों के सामने अवसाद में आ जाते थे..।
फर्राटेदार अँग्रेजी से वे डर जाते थे। उन्होंने उस इंटरव्यू में कहा था कि अँग्रेजी बोलने के लिए..किताब घर की वह बहुप्रचारित कोर्सबुक खरीदी और ट्यूशन भी पढ़ा।
उन्हें कलेक्टर बनाने में इसी अँग्रेजी की बड़ी भूमिका थी। उन्होंने अँग्रेजी पर जीत हाँसिल करने को चुनौती की तरह लिया उसपर फतह पाने का बाद यूपीएससी के लिए जी-जान से जुट गए।
उनकी पहली कलेक्टरी सीधी की ही थी जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे।
फिर रायपुर के कलेक्टर हुए..तब प्रदेश में हवाई जहाज सिर्फ रायपुर में ही उतरता था। दिल्ली रायपुर की फ्लाइट में प्रायः बतौर पायलट राजीव गाँधी आते थे। उन दिनों इंदिरा जी प्रधानमंत्री थीं।
कहते हैं जिस दिन राजीव गांधी हवाई जहाज लेकर आते थे उस दिन बिना नागा कलेक्टर अजीत जोगी उनसे मिलने हवाई अड्डे जाते थे। मित्रता यहीं से शुरू हुई और इतनी गाढ़ी हुई कि वे कलेक्टर से सांसद बन गए। राज्यसभा में वे राजीव गाँधी की पसंद की वजह से पहुँचे..।
जोगीजी ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को अपनी अँगुलियों में नचाया..अपने शर्तों में राजनीति की। ह्वीलचेयर पर भी न रुके, न झुके, न दबे .न भगे। ऐसे जीवट व्यक्तित्व के धनी राजपुरुष को अंतिम प्रणाम्।
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