Chapter: 2 प्राथमिक शिक्षक (MPTET), (CTET) के लिए, विषय- बाल विकास शिक्षा शास्त्र
विकास की विभिन्न अवस्थाएं:-
प्रत्येक बच्चे के विकास की विभिन्न अवस्थाएं होती हैं इन्हीं अवस्थाओं में बच्चों का एक निश्चित विकास होता है।
विकास की अवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए निम्न लिखित चरणों में विभाजित किया गया है:-
● शैशवावस्था उम्र से 2 वर्ष तक।
●प्रारंभिक अवस्था 3 से 6 वर्ष।
●मध्य बाल्यावस्था 6 से 9 वर्ष।
●उत्तर बाल्यावस्था 9 से 12 वर्ष|
●पूर्व किशोरावस्था प्रारंभिक 11 से 15 वर्ष तक ●किशोरावस्था बाद की अवस्था 15 से 19 वर्ष तक
●वयस्क के 18 वर्ष के बाद।
रोस के अनुसार:-
◆शैशवावस्था 1 से 5 वर्ष
◆बाल्यावस्था 5 से 12 वर्ष
◆किशोरावस्था 12 से 18 वर्ष
◆प्रौढ़ावस्था 18 वर्ष के ऊपर|
मानव विकास की अवस्थाओं की प्रमुख विशेषताएं:-
(1)गर्भावस्था :-(0 से 9 माह तक):-,
•डिंबावस्था ,
•पिंडअवस्था
•भ्रूण अवस्था।
(2) शैशवावस्था :-
1. यह अवस्था निर्माण काल माना जाता है।
2. यह अवस्था जन्म से दूसरे वर्ष तक माना जाता है ।
3. फ्रायड के अनुसार, " मानव को जो कुछ बनना होता है वह प्रारंभिक 5 वर्षों में माना जाता है।"
शैशवावस्था की विशेषताएं:-
1.शारीरिक की विकास तीव्रता।
2. मानसिक क्रियाओं की तीव्रता।
3. सीखने की प्रक्रिया की तीव्रता।
4. दूसरों पर निर्भरता ।
5.आत्म प्रेम की भावना।
6. सामाजिक भावनाओं का तीव्र विकास ।
7.अनुकरण द्वारा सीखने की प्रवृत्ति ।
8.संवेगों का प्रदर्शन।
(3)बाल्यावस्था:-
1.यह अवस्था 3 से 12 वर्ष की अवधि तक मानी जाती है।
2. इस अवस्था में बालक में अनेक अनोखे परिवर्तन होते हैं इस अवस्था को एक जटिल अवस्था माना जाता है।
बाल्यावस्था की विशेषताएं:-
(1)मानसिक योग्यता में वृद्धि।
(2)जिज्ञासा की प्रबलता।
(3)वास्तविक जगत से संबंध।
(4)सामाजिक गुणों का विकास।
(5)नैतिक गुणों का विकास।
(6)बहिर्मुखी व्यक्तित्व।
(7) सामूहिक खेलों में रूचि
(8)शारीरिक एवं मानसिक स्थिर।
(4) किशोरावस्था:-
1.यह जीवन का संधिकाल है किशोरों तथा किशोरियों में काम भावना के लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं।
2.किशोरावस्था की अवधि कल्पनात्मक तथा भावनात्मक होती है यहीं पर जीवनसाथी की तलाश होती है।
किशोरावस्था की विशेषताएं:-
1.शारीरिक परिवर्तन
2. अत्यंत जटिल अवस्था
3. घनिष्ठ व व्यक्तिगत मित्रता 4.स्थिरता व समायोजन का अभाव
5.स्वतंत्रता व विद्रोह की भावना 6.काम शक्ति की परिपक्वता
7.रुचियों में परिवर्तन एवं स्थिरता
8.ईश्वर व धर्म में विश्वास
9.12 से 18 वर्ष के बीच की व्यवस्था
10. नशा अपराध की ओर उन्मुख होने की संभावना।
(5)प्रौढ़ावस्था:-
●यह अवस्था व्यावहारिक जीवन की अवस्था कही जाती है।
●इसमें पारिवारिक जीवन या गृहस्थ जीवन की गतिविधियां होती हैं जिसमें कल्पनाएं नहीं रह जाती।
●यह अवस्था बाल्यावस्था की तरह अत्यधिक संवेदनशील मानी जाती है।
वृद्धि एवं विकास का अर्थ:-
वृद्धि और विकास दोनों शब्द प्रयः एक ही अर्थ में प्रयोग किए जाते हैं।
सोरेनसन का विचार:;
"अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग सामान्यतः शारीरिक और उसके भार तथा आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है इस वृद्धि को नापा या तोला जा सकता है।"
हेलो के अनुसार;-
"विकास की प्रक्रिया बालक की गर्भावस्था से लेकर जीवन पर्यंत तक क्रम में चलती रहती है प्रत्येक अवस्था का प्रभाव दूसरी अवस्था में पड़ता है।"
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