Chapter: 1 प्राथमिक शिक्षक, विषय- बाल विकास शिक्षा शास्त्र
मध्य प्रदेश शिक्षक एवं केंद्रीय शिक्षक की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए बाल शिक्षा शास्त्र विषय का प्रथम चैप्टर
विकास की अवधारणा:-
●विकास जीवन पर्यंत चलने वाली एक निरतंर प्रक्रिया है।
● विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक,क्रियात्मक, संज्ञानात्मक, भाषागत, संवेगात्मक का विकास होता है
● क्रमबद्ध एवं सुसंगत होना इस बात को सांकेतिक करता है कि बालक के अंदर अब तक संगठित गुणात्मक परिवर्तन तथा उसमें आगे होने वाला परिवर्तन है।
●अरस्तु के अनुसार, विकास आंतरिक एवं बाहरी कारणों से व्यक्ति में परिवर्तन है।
विकास के अभिलक्षण:-
● विकासात्मक परिवर्तन प्रायः व्यवस्थित प्रगतिशील और नियंत्रित होते हैं।
●विकास बहुआयामी होता है हम साथ कुछ क्षेत्रों में तीव्र हुआ कुछ में धीमी गति में होता है।
● विकास बहुत ही लचीला होता है एक व्यक्ति अपनी पिछली विकास दर की तुलना में किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपेक्षाकृत आकस्मिक रूप से अच्छा सुधार प्रदर्शन कर सकता है।
● विकासात्मक परिवर्तनों में प्रायः परिपक्वता में क्रियात्मकता के स्तर पर उच्च स्तरीय वृद्धि देखने में आती है ,जैसे हड्डियों के घनत्व में कमी या वृद्धावस्था में याददाश्त का कमजोर होना।
● विकासात्मक परिवर्तन मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकते हैं जैसे कद बढ़ाना एवं नैतिक मूल्यों का निर्माण।
●कुछ बच्चे अपनी आयु की तुलना में अधिक जागरूक हो सकते हैं जबकि कुछ बच्चों में विकास की गति बहुत धीमी होती है।
विकास के आयाम
शारीरिक विकास, मानसिक विकास, संवेगिक विकास ,क्रियात्मक विकास, भाषाई विकास, सामाजिक विकास
1 शारीरिक विकास
शरीर के बाएं परिवर्तन जैसे मचाई शारीरिक अनुपात मैं वृद्धि इत्यादि यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
प्रारंभ में शिशु अपनी हर प्रकार के कार्यों के लिए दूसरे पर निर्भर रहता है। विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो जाता है।
2 मानसिक विकास
संज्ञानात्मक या मानसिक विकास से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यता एवं क्षमताओं में वृद्धि और विकास से है, जिसके परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार की समस्याओं में अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग करता है।
पियाजे के अनुसार, विकास की चार अवस्था होती है:-
(1) संवेदनात्मक गामक (2)पूर्व संक्रियात्मक, (3) मूर्त संक्रियात्मक,(4) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था है।
3. सांवेगिक विकास:-
संवेग जिसे भाव भी कहा जाता है, इसका अर्थ होता है ऐसी अवस्था जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है जैसे भय, क्रोध, घृणा ,धैर्य, आश्चर्य स्नेह, खुशी इत्यादि संवेग के उदाहरण है , बालक में आयु बढ़ने के साथ ही इन सब संवेगों के विकास भी होते रहते हैं।
4.क्रियात्मक विकास
क्रियात्मक विकास का अर्थ होता है व्यक्ति की कार्य करने की शक्तियों क्षमताओं या योग्यताओं का विकास करना।
इसके कारण बालक को आत्मविश्वास अर्जित करने में भी सहायता मिलती है। पर्याप्त क्रियात्मक विकास के अभाव में बालक में विभिन्न प्रकार के कौशलों के विकास में बाधा पहुंचती है।
5. भाषायी विकास:-
भाषा के विकास को एक प्रकार से संवेग या संज्ञानात्मक विकास माना जाता है भाषा के माध्यम से बालक अपने मन के भावों विचारों को सबके सामने रखता है।
भाषाई ज्ञान के अंतर्गत बोलकर विचारों को स्पष्ट करना संकेत के माध्यम से अपनी बात रखना तथा लिखकर अपनी बातों को रखना इत्यादि।
6. सामाजिक विकास:-
सामाजिक विकास का शाब्दिक अर्थ होता है समाज के अंतर्गत रहकर विभिन्न भागों को सीखना अर्थात समूह के स्तर पर परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के अनुकूल स्वयं को ढालना एकता मेलजोल तथा पारंपरिक सहयोग की भावना को आत्मसात करना।
समाज के अंतर्गत ही चरित्र का निर्माण तथा जीवन से संबंधित सामाजिक विकास के माध्यम से बालकों में सांस्कृतिक धार्मिक तथा सामुदायिक भावना उत्पन्न होता है।
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