अतिथि विद्वान के 2 साल के मासूम बच्चे की मौत पर अतिथि विद्वानों ने उच्च शिक्षा विभाग और सरकार को बताया जिम्मेवार
भोपाल।
2 साल का मासूम काव्यांश अपने माता पिता की इकलौती संतान और आशा का अंतिम केंद्र था। पिता राजकुमार अहिरवार पृथ्वीपुर जिला टीकमगढ़ में अतिथिविद्वान के पद में कार्यरत थे। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ. जेपीएस चौहान के अनुसार मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार ने उस अभागे पिता और अतिथिविद्वान को कहीं का नही छोड़ा, पहले नौकरी से फालेन आउट करके सेवा से बाहर किया तथा विगत 5 माह से वेतन न मिल पाने के कारण ये अभागा पिता आपनी एक मात्र संतान का इलाज भी नही करा सका।
हाल यह है कि पिता जहां अपनी एक मात्र संतान के यूं बिछड़ जाने के ग़म में खून के आंसू रो रहा है तो माँ अपनी पथराई आंखों से अब भी अपने बच्चे की प्रतीक्षा कर रही है, जबकि मां स्वयं गंभीर रूप से बीमार है किन्तु सबसे बड़ा प्रश्न है कि इस मासूम की असमय मौत का ज़िम्मेदार कौन है? वो अभागा पिता जिसे सरकार ने न सिर्फ नौकरी से निकाला बल्कि 5 माह से वेतन रोक करके बीमार पुत्र को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के काबिल भी नही छोड़ा।
विदित हो कि राजकुमार अहिरवार नौकरी से फालेन आउट होने के बाद सरकार से नियमितीकरण की मांग को समर्थंन देने कई दिनों से शाहजहानी पार्क भोपाल में था। सरकार ने अतिथि विद्वानों का वेतन विगत 8 माह से रोक रखा है। जिससे अतिथिविद्वानों के सामने अपने भविष्य के साथ - साथ वर्तमान में अपने घर खर्च व परिवार के लालन - पालन के लिए भी भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ. देवराज सिंह ने कहा है कि कांग्रेस के राज में प्रदेश के उच्च शिक्षित अतिथिविद्वान बदहाल है।
नौकरी से निकाल देने के ग़म के साथ साथ 8 माह से वेतन रोककर उच्च शिक्षा विभाग ने अतिथिविद्वानों को दोहरी मार मारी है। अब तक उधार लेकर अपने परिवार का लालन पालन कर रहे अतिथि विद्वानों के सामने अब परिवार के भरण पोषण व बच्चों की पढ़ाई का महासंकट उत्पन्न हो गया है। हाल यह है कि फीस के अभाव में स्कूल अतिथि विद्वानो के बच्चों को स्कूलों से बाहर का रास्ता दिखा रहे है।
कई बार हो चुकी है ऐसी घटनाएं;-
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रवक्ता डॉ मंसूर अली के अनुसार अतिथि विद्वानों अथवा उनके परिजनों की असमय मौत की घटना नई नही है। वास्तव में शोषणकारी अतिथिविद्वान व्यवस्था एक ऐसे दानव का रूप ले चुका है जो एक के बाद एक अतिथिविद्वानों और उनके परिजनों को निगलता जा रहा है। असुरक्षित भविष्य और अभावों से भरे वर्तमान ने अतिथिविद्वानों के जीवन को तनाव और अवसाद से भर दिया है। जिससे अतिथिविद्वान और उनके परिजन कई शारीरिक और मानसिक व्याधियों का शिकार होते जा रहे हैं। हालिया घटना कोई नई नही है, बल्कि पूर्व में भी डॉ समी खरे, डॉ राजेश चढ़ार, विनय कुमार, पंकज जैसे कई अतिथिविद्वान असमय इस दुनिया से चले गए। डॉ राजेश चढ़ार, विनय कुमार व पंकज जहां इलाज के अभाव में वहीं डॉ शमी खरे नौकरी से बाहर कर दिए जाने के तनाव को बरदाश्त नही कर सकी। डॉ मंसूर अली ने आगे कहा कि हालिया बच्चे की मौत सरकार की विश्वसनीयता व प्रतिष्ठा पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रही है। वास्तव में अतिथिविद्वान विषय पर गहन शोध किये जाने की आवश्यकता है, तभी इस शोषणकारी व्यवस्था तथा इससे पीड़ित अतिथिविद्वानों की बदहाली सामने आ पाएगी।
आपको बता दें की अतिथिविद्वान नियमितिकरण को लेकर लगातार 51 वें दिन भी आंदोलन जारी है। किन्तु यह सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है कि कईं अतिथिविद्वानों व उनके परिजनों की असमय मृत्यु तनावग्रस्त साथियों के गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो जाने के बाद भी सरकार का दिल नही पसीज रहा है। हमने निर्णय लिया है कि नियमितीकरण होने तक हम शाहजाहानी पार्क के इस आंदोलन को जारी रखेंगे।
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